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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 172
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ये꣢ ते꣣ प꣡न्था꣢ अ꣣धो꣢ दि꣣वो꣢꣫ येभि꣣꣬र्व्य꣢꣯श्व꣣मै꣡र꣢यः । उ꣣त꣡ श्रो꣢षन्तु नो꣣ भु꣡वः꣢ ॥१७२॥

स्वर सहित पद पाठ

ये꣢ । ते꣣ । प꣡न्थाः꣢꣯ । अ꣣धः꣢ । दि꣣वः꣢ । ये꣡भिः꣢꣯ । व्य꣢श्वम् । वि । अ꣣श्वम् । ऐ꣡र꣢꣯यः । उ꣣त꣢ । श्रो꣣षन्तु । नः । भु꣡वः꣢꣯ ॥१७२॥


स्वर रहित मन्त्र

ये ते पन्था अधो दिवो येभिर्व्यश्वमैरयः । उत श्रोषन्तु नो भुवः ॥१७२॥


स्वर रहित पद पाठ

ये । ते । पन्थाः । अधः । दिवः । येभिः । व्यश्वम् । वि । अश्वम् । ऐरयः । उत । श्रोषन्तु । नः । भुवः ॥१७२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 172
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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पदार्थ -

हे प्रभो! (ये)=जो (ते)=तेरे (पन्थाः)=मार्ग (दिवः अधः उ) = ज्ञान पर ही आश्रित हैं (येभिः) = जिनसे आप (व्यश्वम्) = विशिष्ट अश्वोंवाले अर्थात् पवित्र इन्द्रियरूप घोड़ोंवाले पुरुष को (ऐरयः)=गति करवाते हैं, (भुवः)=विचारशील लोग [भुव् अवकल्कने=चिन्तने; भुव्+क्विप्] (नः)=हमें (उत्)=भी (श्रोषन्तु) = उन मार्गों को सुनाएँ, इन मार्गों का ज्ञान दें।

संसार में एक मार्ग श्रद्धामूलक है, दूसरा ज्ञानमूलक । जिस मार्ग का आधार केवल श्रद्धा पर है वह अन्ततोगत्वा मनुष्य के लिए हितकर नहीं हो सकता। मनुष्य उसमें गोते ही खाता रहता है, भटकता ही रहता है। वह लक्ष्य स्थान पर नहीं पहुँच पाता।

मनुष्य को ज्ञानाश्रित मार्ग पर चलना चाहिए। इसपर चलकर ही मनुष्य प्रशस्त इन्द्रियोंवाला 'व्यश्व' बनता है। ज्ञानमूलक मार्ग पर चलने से अभय, सत्त्वशुद्धि आदि उत्तम गुणों से सम्पन्न होकर यह इस मन्त्र का ऋषि ‘वामदेव' बनता है। अत्यन्त प्रशस्त इन्द्रियोंवाला बनने से यह गोतम कहलाता है।

मन्त्र की समाप्ति पर प्रार्थना है कि विचारशील लोग सदा हमें इस मार्ग का श्रवण कराते रहें। इन विचारशीलों के सत्सङ्ग से ही तो मनुष्य उत्तम मनवाला बनता है। विवेक का स्रोत इनके उपदेशों का श्रवण है। इसलिए उपनिषत् कहती है कि( 'उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान् निबोधत') = उठो, जागो, श्रेष्ठों के समीप पहुँचकर ज्ञान प्राप्त करो । संसार में ज्ञान के अभाव में केवल श्रद्धा या अन्धश्रद्धा ने बहुत हानि की है। ज्ञान के मार्ग पर चलना ही ठीक है। यही व्यश्व वा वामदेव बन सकने का रहस्य [secret] है। 

भावार्थ -

हम जीवन में ज्ञानमूलक मार्ग का अवलम्बन करें।

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