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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1838
ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीप आम्बरीषो वा देवता - आपः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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यो꣡ वः꣢ शि꣣व꣡त꣢मो꣣ र꣢स꣣स्त꣡स्य꣢ भाजयते꣣ह꣡ नः꣢ । उ꣣शती꣡रि꣢व मा꣣त꣡रः꣢ ॥१८३८॥

स्वर सहित पद पाठ

यः । वः꣣ । शिव꣡त꣢मः । र꣡सः꣢꣯ । त꣡स्य꣢꣯ । भा꣣जयत । इह꣡ । नः꣣ । उशतीः꣢ । इ꣣व । मात꣡रः꣢ ॥१८३८॥


स्वर रहित मन्त्र

यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥१८३८॥


स्वर रहित पद पाठ

यः । वः । शिवतमः । रसः । तस्य । भाजयत । इह । नः । उशतीः । इव । मातरः ॥१८३८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1838
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

ज्ञान प्रारम्भ में नीरस लगता है – इसकी प्राप्ति बड़े तप व परिश्रम से होने के कारण यह आनन्दमय नहीं लगता, इसीलिए सामान्यतः विद्यार्थी अनध्याय प्रिय होता है, परन्तु जितना जितना ज्ञान प्राप्त होता है उतना उतना ही यह रसमय होता जाता है। इनका यह रस 'परिणामे अमृतोपमम्' परिणाम में अमृततुल्य होता है । यह त्रिशिरा: = प्रकृति, जीव व परमात्मा – तीनों का ज्ञान प्राप्त करनेवाला—इन ज्ञानदुग्धों को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि (यः) = जो (नः) = आपका (शिवतमः रसः) = अत्यन्त कल्याणकारक रस है (तस्य) = उसका (नः) = हमें इह (भाजयत) = इस मानव-जीवन में भागी बनाइए (इव) = जैसे (उशती:) = कामना करती हुई (मातरः) = माताएँ बच्चे को दूध पिलाती हैं। माता बच्चे का अधिक-से-अधिक हित चाहती हुई उसे पुष्टिकर दूध पिलाती है, उसी प्रकार यह ज्ञान भी हमारा हित चाहता हुआ हमें अपना अत्यन्त कल्याणकर रस प्राप्त कराए । ज्ञान का शिवतम तत्त्व हमें प्राप्त हो ।

ये ज्ञान गुरु-शिष्य परम्परा से प्रवाहित होने के कारण 'सिन्धु' कहलाते हैं [स्यन्दते]। ये सिन्धु दो प्रकार से - ऐहलौकिक व पारलौकिक दृष्टिकोण से – 'विज्ञान व ज्ञान' के दृष्टिकोण से—जिसे प्राप्त हुए हैं, वह 'सिन्धुद्वीप' है । इस ज्ञान के द्वैविध्य को ही ईशोपनिषद् में 'अविद्या व विद्या' शब्दों से स्मरण किया है। इन दोनों को प्राप्त करनेवाला प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि सिन्धुद्वीप वस्तुतः मृत्यु से बचकर अमरता को प्राप्त करनेवाला होता है ।

भावार्थ -

मैं ज्ञानजलों के इहामुत्र- उभयत्र कल्याण करनेवाले रस को प्राप्त करके सचमुच ‘सिन्धुद्वीप' बनूँ।

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