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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 340
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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आ꣢ त्वा꣣ स꣡खा꣢यः स꣣ख्या꣡ व꣢वृत्युस्ति꣣रः꣢ पु꣣रू꣡ चि꣢दर्ण꣣वां꣡ ज꣢गम्याः । पि꣣तु꣡र्नपा꣢꣯त꣣मा꣡ द꣢धीत वे꣣धा꣡ अ꣣स्मि꣡न्क्षये꣢꣯ प्रत꣣रां꣡ दीद्या꣢꣯नः ॥३४०॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । त्वा꣣ । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । सख्या꣢ । स꣣ । ख्या꣢ । व꣣वृत्युः । तिरः꣢ । पु꣣रु꣢ । चि꣣त् । अर्णवा꣢न् । ज꣣गम्याः । पितुः꣢ । न꣡पा꣢꣯तम् । आ । द꣣धीत । वेधाः꣢ । अ꣣स्मि꣢न् । क्ष꣡ये꣢꣯ । प्र꣣तरा꣢म् । दी꣡द्या꣢꣯नः । ॥३४०॥


स्वर रहित मन्त्र

आ त्वा सखायः सख्या ववृत्युस्तिरः पुरू चिदर्णवां जगम्याः । पितुर्नपातमा दधीत वेधा अस्मिन्क्षये प्रतरां दीद्यानः ॥३४०॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । त्वा । सखायः । स । खायः । सख्या । स । ख्या । ववृत्युः । तिरः । पुरु । चित् । अर्णवान् । जगम्याः । पितुः । नपातम् । आ । दधीत । वेधाः । अस्मिन् । क्षये । प्रतराम् । दीद्यानः । ॥३४०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 340
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 11;
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पदार्थ -

आदर्श घर वह है जिसमें सब व्यक्ति १.(त्व सखायः) = प्रभुरूप मित्रवाले होते हुए (सख्या)=परस्पर मित्ररूप से (आ) = सर्वथा (ववृत्युः) = बर्ताव करते हैं। परस्पर मित्रभाव रखने के
लिए आवश्यक यह कि सब उस प्रभु को मित्र बनाकर चलते हैं तो आपस में भी मित्रता से चल पाते हैं—आपस का माधुर्य बना रहता है। २. इस घर में रहकर गृहस्थ (तिरः) = प्राप्त, परन्तु (पुरूचित्) = निश्चितरूप से पालक व पूरक (अर्णवान्) = कामों को [कामो हि समुद्रः] (जगम्या:)=प्राप्त हो। गृहस्थ में यद्यपि ('कामात्मता न प्रशस्ता') = कामात्मता ठीक नहीं है तो न चैवेहास्त्यकामता=बिल्कुल काम- शून्यता भी सम्भव नहीं। औरों के भोगों को देखकर जलना तो ठीक नहीं, परन्तु प्राप्त [ तिरः] भोगों के सेवन में पाप नहीं बशर्ते कि वे नाशक न होकर पुरूचित्=पालक व पूरक हों। ३. इस गृहस्थ में (वेधाः) = मेधावी प्रजापालक गृहस्थ (पितुः)=पिता के (न पातम्) = वंश को उच्छिन्न न करनेवाले सन्तान को आदधीत धारण करें। (‘प्रजाभिरग्ने अमृतत्वमश्याम') = इस वेद के आदेश के अनुसार एक सद् गृहस्थ प्रजा के द्वारा अपने को अमर बनाने का प्रयत्न करे। ४. और (अस्मिन्) = इस क्(षये) = घर में (प्रतराम्) = खूब (दीद्यान:) = चमकने का प्रयत्न करे-अपने मस्तिष्क को ज्ञान की ज्योति से उज्ज्वल बनाए । ‘वामदेव गौतम' का कर्त्तव्य है कि वह अपने घर में उल्लिखित चार बातों को अवश्य उत्पन्न करे। इनके बिना घर कभी 'उत्तम घर' नहीं बन सकता।

भावार्थ -

हम प्रभु मित्रता में परस्पर मित्रता से चलें, संसार के उचित आनन्दों को प्राप्त करें और ज्ञान से अपने को उज्ज्वल बनाएँ।

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