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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 496
ऋषिः - उचथ्य आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡रि꣢ द्यु꣣क्ष꣡ꣳ सन꣢꣯द्र꣣यिं꣢꣫ भर꣣द्वा꣡जं꣢ नो꣣ अ꣡न्ध꣣सा । स्वा꣣नो꣡ अ꣢र्ष प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢ ॥४९६॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । द्यु꣣क्ष꣢म् । द्यु꣣ । क्ष꣢म् । स꣡न꣢꣯त् । र꣣यि꣢म् । भ꣡र꣢꣯त् । वा꣡ज꣢꣯म् । नः꣣ । अ꣡न्ध꣢꣯सा । स्वा꣣नः । अ꣣र्ष । प꣣वि꣡त्रे꣢ । आ ॥४९६॥


स्वर रहित मन्त्र

परि द्युक्षꣳ सनद्रयिं भरद्वाजं नो अन्धसा । स्वानो अर्ष पवित्र आ ॥४९६॥


स्वर रहित पद पाठ

परि । द्युक्षम् । द्यु । क्षम् । सनत् । रयिम् । भरत् । वाजम् । नः । अन्धसा । स्वानः । अर्ष । पवित्रे । आ ॥४९६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 496
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
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पदार्थ -

प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'उचथ्य आङ्गिरस' है = उत्तम स्तोता जोकि शक्ति- सम्पन्न है। यह प्रभु से अराधना करता है कि (न:) = हममें (अन्धसा) = आध्यायनीय सोम के द्वारा (रयिम्) = सम्पत्ति को (परिसनत्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में प्राप्त कराईये । कौन सी सम्पत्ति को? जोकि १. (द्युक्षम्) = ज्ञान में निवास करनेवाली है और २. (भरद्वाजं) = हममें शक्ति का भरण करनेवाली है।

इस प्रकार स्तोता की सम्पत्ति का चित्रण शब्दों में हुआ है कि 'वह प्रकाशमय है, और शक्ति से पूर्ण है।' आदर्श मनुष्य भी तो यही है जो एक ही पहलवान के शरीर में ऋषि की आत्मा को रखता है। प्रकाश और शक्ति का चयन करनेवाला ही सच्चा स्तोता है। सोम इन दोनों ही तत्त्वों का मूल है। इसलिए यह स्तोता सोम को अन्धस्-आध्यायनीय=मानता है। यह सोम से कहता है कि (स्वानः) = उत्तम प्रकार से मुझे प्राणित करनेवाला, सब प्रकार से ध्यान देने योग्य तू (पवित्रे) = पवित्रता के निमित्त (आ अर्ष) = समन्तात् गति कर। यह कहता है कि सोम इसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग में व्याप्त को और इसके द्वारा इसका शरीर पवित्र होकर प्राणित हो उठे। यदि मैं अपने जीवन को इस प्रकार बनाता हूँ तभी मैं प्रभु का सच्चा स्तोता होता हूँ। 

भावार्थ -

मैं ज्ञान, शक्ति, प्राणों के बल व पवित्रता को ही अपनी सम्पत्ति समझू |

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