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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 495
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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अ꣣या꣢ वी꣣ती꣡ परि꣢꣯ स्रव꣣ य꣡स्त꣢ इन्दो꣣ म꣢दे꣣ष्वा꣢ । अ꣣वा꣡ह꣢न्नव꣣ती꣡र्नव꣢꣯ ॥४९५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣या꣢ । वी꣣ती꣢ । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व । यः꣢ । ते꣣ । इन्दो । म꣡दे꣢꣯षु । आ । अ꣣वा꣡ह꣢न् । अ꣣व । अ꣡ह꣢꣯न् । न꣣वतीः꣢ । न꣡व꣢꣯ ॥४९५॥
स्वर रहित मन्त्र
अया वीती परि स्रव यस्त इन्दो मदेष्वा । अवाहन्नवतीर्नव ॥४९५॥
स्वर रहित पद पाठ
अया । वीती । परि । स्रव । यः । ते । इन्दो । मदेषु । आ । अवाहन् । अव । अहन् । नवतीः । नव ॥४९५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 495
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3;
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विषय - नवतीर्नव का हनन या परमगति की प्राप्ति
पदार्थ -
हे (इन्दो) = शक्ति देनेवाले सोम! तू (अया) = इस (वीती) = मार्ग से (परिस्त्रव) = मेरे अङ्ग - प्रत्यङ्ग में प्रवाहित हो (यः) = जिससे ते तेरा स्रवण- प्रवाह - (आ) = सब अङ्गों में चारों ओर (मदेषु) = मदों के निमित्त हो। सोम के शरीर में व्याप्त होने पर जीवन उल्लासमय बनता है। यह सोमी पुरुष (नवती:) = [नव गतौ] गतिमय- चञ्चल (नव) = पाँच ज्ञानेन्द्रियों व अन्तःकरण चतुष्टय [मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार] को (अवाहन्) = दूर कर देता है। चञ्चलता के हनन से चञ्चल इन्द्रियों का हनन हो जाता है। शत्रुता के नाश से शत्रु के मित्र बन जाने पर शत्रु नष्ट हो जाता है। चञ्चलता के नष्ट हो जाने पर ये नवती- अत्यंत अस्थिर इन्द्रियाँ भी नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान में अवस्थित इन्द्रियों व मन का उदय होता है। ('यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह । बुद्धिश्च न विचेष्टते तमाहुः परमाङ्गतिम् ॥') = इस उपनिषद् वाक्य के अनुसार यही परमगति है। अमहीयु पुरुष ही इस परमगति को जानता है। पार्थिव भोगों की कामनाएँ तो मनुष्य को अत्यन्त चञ्चल बनाए रहती हैं।
यहाँ 'नव' से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेन्द्रियों का भी ग्रहण हो सकता है। इसमें वाक् या जिह्वा ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों में समान होने से वस्तुतः संख्या नौ ही है।
भावार्थ -
मेरा जीवन सोम के द्वारा उल्लासमय हो और मैं इन अस्थिर इन्द्रियों को स्थिर करनेवाला बनूँ।
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