Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 520
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
5
इ꣡न्द्रा꣢य पवते꣣ म꣢दः꣣ सो꣡मो꣢ म꣣रु꣡त्व꣢ते सु꣣तः꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢धारो꣣ अ꣡त्यव्य꣢꣯मर्षति꣣ त꣡मी꣢ मृजन्त्या꣣य꣡वः꣢ ॥५२०॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रा꣢꣯य । प꣣वते । म꣡दः꣢꣯ । सो꣡मः꣢꣯ । म꣣रु꣡त्व꣢ते । सु꣣तः꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢धारः । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रः । अ꣡ति꣢꣯ । अ꣡व्य꣢꣯म् । अ꣣र्षति । त꣢म् । ई꣣ । मृजन्ति । आय꣡वः꣢ ॥५२०॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राय पवते मदः सोमो मरुत्वते सुतः । सहस्रधारो अत्यव्यमर्षति तमी मृजन्त्यायवः ॥५२०॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्राय । पवते । मदः । सोमः । मरुत्वते । सुतः । सहस्रधारः । सहस्र । धारः । अति । अव्यम् । अर्षति । तम् । ई । मृजन्ति । आयवः ॥५२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 520
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
Acknowledgment
विषय - सहस्त्रधार सोम का शोधन
पदार्थ -
(सोमः) = सोम इन्द्राय जितेन्द्रिय के लिए (मदः) = उल्लासजनक होकर (पवते) = शरीर में प्रवाहित होता है। सोम के संयम के लिए इन्द्रियों को वश में करना आवश्यक है। रसना का संयम किए बिना क्या कभी ब्रह्मचर्य सम्भव है? 'इन्द्र' प्रातः मध्यान्ह व सायं तीनों सवनों में सोम का पान करता है अर्थात् बाल्य, यौवन व वार्धक्य में सोम को सुरक्षित रखता है, इसलिए उसका जीवन मद= उल्लास लिए हुए है। यह सोम (मरुत्वते) = प्राणवाले के लिए (सुतः) = उत्पन्न किया गया है। प्राणसाधना करनेवाले पुरुष ही इस सोम की ऊर्ध्वगति कर पाता है।
धारण किया हुआ यह सोम (सहस्त्रधार:) = हज़ारों प्रकार से धारण करनेवाला होता है। जीवात्मा की यह सभी शक्तियों को विकसित करनेवाला होता है। यह सोम (अव्यम्) = रक्षा करनेवाले पुरुष को (अति अर्षति) = अतिशयेन प्राप्त होता है। प्रतिदिन कण-कण संग्रह करके भी संचित होकर यह राशिभूत हो जाता है । (ईम) = निश्चय से (तम्) = उस सोम को (आयवः) = गतिशील पुरुष (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं। गतिशीलता से वासना को स्थान नहीं मिलता और वासना के अभाव में यह सोम शुद्ध बना रहता है। शुद्धता के लिए क्रियाशीलता आवश्यक है।
भावार्थ -
मैं सहस्रधार सोम का शोधन करूँ। इसके लिए क्रियाशील बना रहूँ।
इस भाष्य को एडिट करें