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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 583
ऋषिः - शक्तिर्वासिष्ठः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - ककुप्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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त्वं꣢ ह्या३꣱ङ्ग꣡ दै꣢व्यं꣣ प꣡व꣢मान꣣ ज꣡नि꣢मानि द्यु꣣म꣡त्त꣢मः । अ꣣मृतत्वा꣡य꣢ घो꣣ष꣡य꣢न् ॥५८३॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । हि । अ꣣ङ्ग꣢ । दै꣣व्यम् । प꣡व꣢꣯मान । ज꣡नि꣢꣯मानि । द्यु꣣म꣡त्त꣢मः । अ꣣मृतत्वा꣡य꣢ । अ꣣ । मृतत्वा꣡य꣢ । घो꣣ष꣡य꣢न् ॥५८३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं ह्या३ङ्ग दैव्यं पवमान जनिमानि द्युमत्तमः । अमृतत्वाय घोषयन् ॥५८३॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । हि । अङ्ग । दैव्यम् । पवमान । जनिमानि । द्युमत्तमः । अमृतत्वाय । अ । मृतत्वाय । घोषयन् ॥५८३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 583
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
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विषय - मैं उत्तीर्ण घोषित किया जाऊँ
पदार्थ -
प्रभु के शिक्षणालय में अपने जीवन को शक्ति सम्पन्न बनाकर यह 'शक्ति' नामवाला हो गया है। यह काम-क्रोध को जीतने के कारण ‘वासिष्ठ' है। यह प्रभु से निवेदन करता
हे प्रभो! (त्वम्) = आप (हि) = निश्चय से (अङ्ग) = [अगि गतौ] मेरे जीवन में सब उत्कृष्ट गति के साधक हैं, (पवमान) = आपके स्मरण से मेरा जीवन पवित्र होता है, आप (द्युमत्तमः) = सर्वाधिक प्रकाशमय हैं। आचार्य ने विद्यार्थी के जीवन में 'पवित्रता व ज्ञान प्रकाश' ही भरना होता है। परमेश्वर से उत्कृष्ट आचार्य सम्भव ही कहाँ है? इस शिक्षणालय में रहकर प्रभु के प्रति समर्पण द्वारा यदि सचमुच इनमें दिव्यता - दैवी सम्पत्ति का विकास हो जाता है तो इन्हें अन्य जन्म लेने की आवश्यकता नहीं रह जाती । (दैव्यं जनिमानि) = दिव्यता के विकासवाले मनुष्य को वे प्रभु (अमृतत्वाय घोषयन्) = अमरता के लिए उद्घोषित करते हैं। ये व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से ऊपर उठकर मुक्त हो जाते हैं, ब्रह्मसंस्थ होकर अमरता को पा लेते हैं।
भावार्थ -
मैं सदा उत्तीर्ण होता हुआ अमरता की ओर बढ़ें।
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