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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 664
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनो जमदग्निर्वा देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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उ꣣रुश꣡ꣳसा꣢ नमो꣣वृ꣡धा꣢ म꣣ह्ना꣡ दक्ष꣢꣯स्य राजथः । द्रा꣣घि꣢ष्ठाभिः शुचिव्रता ॥६६४॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣣रुश꣡ꣳसा꣢ । उ꣣रु । श꣡ꣳसा꣢꣯ । न꣣मोवृ꣡धा꣢ । न꣣मः । वृ꣡धा꣢꣯ । म꣣हा꣢ । द꣡क्षस्य꣢꣯ । रा꣣जथः । द्रा꣡घि꣢꣫ष्ठाभिः । शुचिव्रता । शुचि । व्रता ॥६६४॥


स्वर रहित मन्त्र

उरुशꣳसा नमोवृधा मह्ना दक्षस्य राजथः । द्राघिष्ठाभिः शुचिव्रता ॥६६४॥


स्वर रहित पद पाठ

उरुशꣳसा । उरु । शꣳसा । नमोवृधा । नमः । वृधा । महा । दक्षस्य । राजथः । द्राघिष्ठाभिः । शुचिव्रता । शुचि । व्रता ॥६६४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 664
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

गतमन्त्र में कहा गया था कि प्राणापान हमारे कर्मों में माधुर्य लाते हैं। उसी के स्पष्टीकरण के लिए यहाँ कहते हैं कि ये प्राणापान १. (उरुशंसा) = खूब स्तुति करनेवाले होकर (राजथः) = शोभायमान होते हैं। प्राणापान की साधनावाला व्यक्ति कभी किसी की निन्दा नहीं करता, वह सदैव सबका शंसन ही करता है। परिणामतः प्राणापान की साधना शरीर को ही स्वस्थ नहीं बनाती; मन व बुद्धि को भी विशाल व निर्मल कर देती है। ये प्राणापान (नमोवृधा) = नमस्- नम्रता बढ़ानेवाले हैं। यह साधक ‘दूसरों की निन्दा नहीं करता' इतना ही नहीं, यह अपने दोषों को देखता हुआ उन्हें दूर करने के लिए सदा प्रयत्नशील होता है और नम्र बना रहता है ।

इस साधाक में ये प्राणापान (दक्षस्य) = उन्नति [दक्ष् to grow] = विकसित होना व विकास की (मह्ना) = महिमा से (राजथः) = शोभायमान होते हैं। इसके सभी कार्य परनिन्दा से शून्य, नम्रता से युक्त

और परिणामत: उन्नति के साधक होते हैं । यह साधक अवनति के मार्ग पर जाता ही नहीं । मन्त्र की समाप्ति पर कहते हैं कि ये प्राणापान (शुचिव्रता) = पवित्र कर्मोंवाले होते हैं। किस प्रकार? (द्राघिष्ठाभिः) = अपनी दीर्घ गतियों के द्वारा । प्राणायाम में जब हम अन्दर गहरा श्वासप्रश्वास लेते हैं, तब ये प्राणापान हमारे दोषों को नष्ट कर हमें शुचि बना देते हैं। इस प्रकार गहरा श्वास [deep breathing] लेने का लाभ स्पष्ट है ।

भावार्थ -

प्राणायाम से हमारे कर्म स्तुतिरूप, निरभिमानतायुक्त, उन्नतिशील व पवित्र होंगे।

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