Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 665
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनो जमदग्निर्वा
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
गृ꣣णाना꣢ ज꣣म꣡द꣢ग्निना꣣ यो꣡ना꣢वृ꣣त꣡स्य꣢ सीदतम् । पा꣣त꣡ꣳ सोम꣢꣯मृतावृधा ॥६६५॥
स्वर सहित पद पाठगृणाना꣢ । ज꣣म꣡द꣢ग्निना । ज꣣म꣢त् । अ꣣ग्निना । यो꣡नौ꣢꣯ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । सी꣣दतम् । पात꣢म् । सो꣡म꣢꣯म् । ऋ꣣तावृधा । ऋत । वृधा ॥६६५॥
स्वर रहित मन्त्र
गृणाना जमदग्निना योनावृतस्य सीदतम् । पातꣳ सोममृतावृधा ॥६६५॥
स्वर रहित पद पाठ
गृणाना । जमदग्निना । जमत् । अग्निना । योनौ । ऋतस्य । सीदतम् । पातम् । सोमम् । ऋतावृधा । ऋत । वृधा ॥६६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 665
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - ऋत के मूल स्थान में
पदार्थ -
इस मन्त्र में प्राणसाधना के लाभों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि (जमदग्निना) = जाठराग्नि का ध्यान रखनेवाले जमदग्नि से (गृणाना) = स्तुति किये जाते हुए प्राणापानो ! तुम (ऋतस्य योनौ सीदतम्) = ऋत के मूल स्थान में स्थित होओ । ऋत की योनि प्रभु हैं। प्राणापान की साधना हमें प्रभु की गोद में ला बैठाती है। प्राणों की साधना से हमारे कर्म बड़े पवित्र हो गये थे । वे अनृत [असत्य] न रहकर ऋत बन गये थे। प्राणसाधक के जीवन में सब कर्म ठीक ही चलते हैं। ‘सूर्याचन्द्रमसाविव'=सूर्य और चन्द्रमा की भाँति वह अपने दैनन्दिन कार्य-कलाप में ठीक ही चलता है, अतः ये प्राणापान (ऋतावृधा) = ऋत की वृद्धि करनेवाले हैं। ऋत की वृद्ध करके ही ये उसे उस ऋत के मूल स्थान में पहुँचा पाते हैं। बिना उस जैसा बने उस तक थोड़े ही पहुँचा जाता है ?
ये प्राणापान साधक के जीवन में ऋत की वृद्धि इसलिए कर पाते हैं कि (सोमम् पातम्) = ये सोम का पान करते हैं। सोम का अभिप्राय वीर्यशक्ति [semen] से है । प्राणापान के द्वारा हम उस शक्ति को शरीर में ही पी लेते हैं, अर्थात् उसका अपव्यय नहीं होने देते। यही वैदिक साहित्य में इन्द्र का सोमपान कहलाता है । यही ब्रह्मचर्य है । ब्रह्मचर्य ही ब्रह्म प्राप्ति का द्वार है । ।
भावार्थ -
प्राणसाधना से हम सोम का पान करते हुए ऋत- वृद्धि के द्वारा ऋतपुञ्ज प्रभु की गोद में बैठनेवाले बनें ।
इस भाष्य को एडिट करें