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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 780
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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या꣡ ते꣢ भी꣣मा꣡न्यायु꣢꣯धा ति꣣ग्मा꣢नि꣣ स꣢न्ति꣣ धू꣡र्व꣢णे । र꣡क्षा꣢ समस्य नो नि꣣दः꣢ ॥७८०॥

स्वर सहित पद पाठ

या । ते꣣ । भीमा꣡नि꣢ । आ꣡यु꣢꣯धा । ति꣣ग्मा꣡नि꣢ । स꣡न्ति꣢꣯ । धू꣡र्व꣢꣯णे । र꣡क्ष꣢꣯ । स꣣मस्य । नः । निदः꣢ ॥७८०॥


स्वर रहित मन्त्र

या ते भीमान्यायुधा तिग्मानि सन्ति धूर्वणे । रक्षा समस्य नो निदः ॥७८०॥


स्वर रहित पद पाठ

या । ते । भीमानि । आयुधा । तिग्मानि । सन्ति । धूर्वणे । रक्ष । समस्य । नः । निदः ॥७८०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 780
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

हे प्रभो ! (या) = जो (ते) = तेरे (भीमानि) = शत्रुओं के लिए भय पैदा करनेवाले (तिग्मानि) = तेज (आयुधा) = शस्त्र (धूर्वणे) = हिंसकों को पराजित करने के लिए (सन्ति) =हैं, उन अस्त्रों के द्वारा (न:) = हमारी (समस्य) = सब (निदः) = निन्दक शत्रुओं से (रक्ष) = रक्षा कीजिए । =

प्रभु का प्रखर अस्त्र 'ज्ञान' ही है । इस ज्ञान की ज्योति में ही काम भस्म हो जाता है । प्रभु का यह ज्ञानरूप अस्त्र इन कामादि के लिए भीम व तिग्म है । ज्ञान व्यसनों के मूल – लोभ को ही समाप्त कर देता है। ‘प्रेम-दान-दया' आदि सात्त्विक वृत्तियाँ ही वे अस्त्र हैं जो ‘काम-क्रोधलोभादि' असुरवृत्तियों की प्रतिपक्ष हैं । हम प्रेम से काम को, दान से लोभ को और दया की वृत्ति से क्रोध का संहार करें। प्रभु अपने ज्ञानरूप प्रखर शस्त्र से सब निन्दनीय शत्रुओं से हमारी रक्षा करें ।

भावार्थ -

हम प्रभु की उपासना करें, प्रभु के अस्त्र शत्रुओं का असन करेंगे, दूर फेंकेंगे।
 

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