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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 780
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
19
या꣡ ते꣢ भी꣣मा꣡न्यायु꣢꣯धा ति꣣ग्मा꣢नि꣣ स꣢न्ति꣣ धू꣡र्व꣢णे । र꣡क्षा꣢ समस्य नो नि꣣दः꣢ ॥७८०॥
स्वर सहित पद पाठया । ते꣣ । भीमा꣡नि꣢ । आ꣡यु꣢꣯धा । ति꣣ग्मा꣡नि꣢ । स꣡न्ति꣢꣯ । धू꣡र्व꣢꣯णे । र꣡क्ष꣢꣯ । स꣣मस्य । नः । निदः꣢ ॥७८०॥
स्वर रहित मन्त्र
या ते भीमान्यायुधा तिग्मानि सन्ति धूर्वणे । रक्षा समस्य नो निदः ॥७८०॥
स्वर रहित पद पाठ
या । ते । भीमानि । आयुधा । तिग्मानि । सन्ति । धूर्वणे । रक्ष । समस्य । नः । निदः ॥७८०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 780
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में फिर उन्हीं से प्रार्थना है।
पदार्थ
हे पवमान सोम ! हे कर्मशूर जगदीश्वर, आचार्य और राजन् ! (धूर्वणे) हिंसक के लिए (या) जो (ते) आपके (भीमानि) भयंकर, (तिग्मानि) तीक्ष्ण (आयुधा) हथियार (सन्ति) हैं, उनके द्वारा आप (समस्य) सब शत्रुओं से की जानेवाली (निदः) निन्दा से (नः) हमें (रक्ष) बचाइये ॥३॥ यहाँ अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥३॥
भावार्थ
जगदीश्वर दण्डशक्तिरूप शस्त्रास्त्रों से, आचार्य ब्रह्मतेजरूप शस्त्रास्त्रों से और राजा भौतिक शस्त्रास्त्रों से दुष्टों की दुष्टता को दूर करके उनसे की जानेवाली निन्दा से मनुष्यों, शिष्यों और प्रजाजनों की रक्षा करें ॥३॥
पदार्थ
(धूर्वणे) हे धूर्वणि! काम आदि शत्रुओं के नाशक (ते) तेरे (या) जो (भीमानि) भयङ्कर (तिग्मानि) तीक्ष्ण (आयुधा) उपदेश शस्त्र (सन्ति) हैं (समस्य निदः) समस्त निन्दक के दबाव से (नः-रक्षा) हमारी रक्षा कर।
भावार्थ
हे शान्तस्वरूप काम आदि के विनाशक परमात्मन्! तेरे जो भयङ्कर तीक्ष्ण उपदेशास्त्र हैं उनसे समस्त काम आदि के दबाव से हमारी रक्षा कर॥३॥
विशेष
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विषय
भीम व तिग्म आयुध
पदार्थ
हे प्रभो ! (या) = जो (ते) = तेरे (भीमानि) = शत्रुओं के लिए भय पैदा करनेवाले (तिग्मानि) = तेज (आयुधा) = शस्त्र (धूर्वणे) = हिंसकों को पराजित करने के लिए (सन्ति) =हैं, उन अस्त्रों के द्वारा (न:) = हमारी (समस्य) = सब (निदः) = निन्दक शत्रुओं से (रक्ष) = रक्षा कीजिए । =
प्रभु का प्रखर अस्त्र 'ज्ञान' ही है । इस ज्ञान की ज्योति में ही काम भस्म हो जाता है । प्रभु का यह ज्ञानरूप अस्त्र इन कामादि के लिए भीम व तिग्म है । ज्ञान व्यसनों के मूल – लोभ को ही समाप्त कर देता है। ‘प्रेम-दान-दया' आदि सात्त्विक वृत्तियाँ ही वे अस्त्र हैं जो ‘काम-क्रोधलोभादि' असुरवृत्तियों की प्रतिपक्ष हैं । हम प्रेम से काम को, दान से लोभ को और दया की वृत्ति से क्रोध का संहार करें। प्रभु अपने ज्ञानरूप प्रखर शस्त्र से सब निन्दनीय शत्रुओं से हमारी रक्षा करें ।
भावार्थ
हम प्रभु की उपासना करें, प्रभु के अस्त्र शत्रुओं का असन करेंगे, दूर फेंकेंगे।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि तानेव प्रार्थयते।
पदार्थः
हे पवमान सोम ! हे कर्मशूर जगदीश्वर आचार्य नृपते वा ! (धूर्वणे) हिंसकाय। [धुर्वी हिंसार्थः। धूर्वति हिनस्ति यः स धूर्वा तस्मै।] (या) यानि (ते) तव (भीमानि) भयङ्कराणि, (तिग्मानि) तीक्ष्णानि (आयुधा) आयुधानि [सर्वत्र ‘शेश्छन्दसि बहुलम्। अ० ६।१।७०’ इति शेर्लोपः।] (सन्ति) वर्त्तन्ते, तैः (समस्य) सर्वस्य शत्रोः (निदः) निन्दायाः (नः) अस्मान् (रक्ष) त्रायस्व ॥३॥ अत्रार्थश्लेषालङ्कारः ॥३॥
भावार्थः
जगदीश्वरो दण्डशक्तिरूपैराचार्यो ब्रह्मतेजोरूपैर्नृपतिश्च भौतिकैः शस्त्रास्त्रैर्दुष्टानां दुष्टतां निराकृत्य तत्कृतान्निन्दनाद् मनुष्यान् शिष्यान् प्रजाजनांश्च रक्षन्तु ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६१।३०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the dreadful and sharp weapons Thou hast for the destruction of the violent, guard us therewith from all revilers !
Meaning
Whatever are your sharpest and most awful weapons for the destruction of destroyers, with those weapons, pray, protect us against all maligners and enemies. (Rg. 9-61-30)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ: (धूर्वणे) હે ધૂર્વણિ ! કામ આદિ શત્રુઓના નાશક (ते) તારા (या) જે (भीमानि) ભયંકર-ભયકારી (तिग्मानि) તીક્ષ્ણ (आयुधा) ઉપદેશશસ્ત્ર (सन्ति) છે (समस्य निदः? સમસ્ત નિંદકનાં દબાણથી (नः रक्षा) અમારી રક્ષા કર. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે શાન્ત સ્વરૂપ કામ આદિના વિનાશક પરમાત્મન્ ! તારું જે ભયંકર, તીક્ષ્ણ, ઉપદેશ શાસ્ત્ર છે, તેના દ્વારા સમસ્ત કામ આદિના પીડનથી અમારી રક્ષા કર. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
जगदीश्वराने दण्डशक्तीरूपी शस्त्रास्त्रांनी, आचार्याने ब्रह्मतेजरूपी शस्त्रास्त्रांनी व राजाने भौतिक शस्त्रास्त्रांनी दुष्टांची दुष्टता दूर करून त्यांच्याकडून केलेल्या निंदेपासून माणसांचे, शिष्यांचे व प्रजाजनांचे रक्षण करावे ॥३॥
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