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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 799
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रो꣢ दी꣣र्घा꣢य꣣ च꣡क्ष꣢स꣣ आ꣡ सूर्य꣢꣯ꣳ रोहयद्दि꣣वि꣢ । वि꣢꣫ गोभि꣣र꣡द्रि꣢मैरयत् ॥७९९॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रः꣢꣯ । दी꣣र्घा꣡य꣢ । च꣡क्ष꣢꣯से । आ । सू꣡र्य꣢꣯म् । रो꣣हयत् । दिवि꣢ । वि । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣡द्रि꣢꣯म् । अ । द्रि꣣म् । ऐरयत् ॥७९९॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्यꣳ रोहयद्दिवि । वि गोभिरद्रिमैरयत् ॥७९९॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्रः । दीर्घाय । चक्षसे । आ । सूर्यम् । रोहयत् । दिवि । वि । गोभिः । अद्रिम् । अ । द्रिम् । ऐरयत् ॥७९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 799
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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पदार्थ -

(इन्द्रः) = सर्वशक्तिमान् प्रभु (दीर्घाय चक्षसे) = विस्तृत प्रकाश के लिए (सूर्यम्) = सूर्य को (दिवि) = द्युलोक में (आरोहयत्) = आरूढ़ करते हैं । रात्रि के समय हमारे दर्शन का वृत्त अति छोटा हो जाता है। दिन हुआ, सूर्योदय हुआ और वह दर्शन का वृत्त विशाल हो जाता है । वस्तुतः आँख सूर्य का ही तो एक छोटा रूप है (‘आदित्यश्चक्षुर्भूत्वाऽक्षिणी प्राविशत्') । वैदिक संस्कृति में उत्पन्न होते ही बच्चे को सूर्य का दर्शन कराते हैं— ब्रह्मचारी को भी, गृहस्थ को भी तथा संन्यासी को भी । यह सब इसीलिए कि उन्हें यह प्रेरणा देनी होती है कि तुम्हें सूर्य के समान ही दीर्घदृष्टि बनना है।

यह सूर्य ही (गोभिः) = अपनी किरणों से (अद्रिम्) = मेघ को (वि- ऐरयत्) = विशिष्टरूप से प्रेरित करता है। सूर्य की किरणों से जल वाष्पीभूत होकर अन्तरिक्ष में मेघरूप से ही जाता है। सूर्य का मेघनिर्माणरूप कार्य भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रभु की सर्वोत्कृष्ट प्राकृतिक रचना सूर्य ही है। यह प्रभु की अद्भुत विभूति है। सूर्य शरीर को नीरोग करता है और दृष्टिशक्ति को तीव्र करता है, तो बाह्य जगत् में यह मेघ-निर्माणरूप महान् कार्य करता है । इस विभूति को देखकर हमें प्रभु का स्मरण होता है।

भावार्थ -

सूर्य प्रभु की महान् विभूति है ।
 

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