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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 817
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣡म्मि꣢श्लो अरु꣣षो꣡ भु꣢वः सूप꣣स्था꣡भि꣣र्न꣢ धे꣣नु꣡भिः꣢ । सी꣡द꣢ञ्छ्ये꣣नो꣢꣫ न यो꣣निमा꣢ ॥८१७॥

स्वर सहित पद पाठ

सं꣡मि꣢꣯श्लः । सम् । मि꣣श्लः । अरुषः꣢ । भु꣣वः । सूपस्था꣡भिः꣢ । सु꣣ । उपस्था꣡भिः꣢ । न । धे꣣नु꣡भिः꣢ । सी꣡द꣢꣯न् । श्ये꣣नः꣢ । न । यो꣡नि꣢꣯म् । आ ॥८१७॥


स्वर रहित मन्त्र

सम्मिश्लो अरुषो भुवः सूपस्थाभिर्न धेनुभिः । सीदञ्छ्येनो न योनिमा ॥८१७॥


स्वर रहित पद पाठ

संमिश्लः । सम् । मिश्लः । अरुषः । भुवः । सूपस्थाभिः । सु । उपस्थाभिः । न । धेनुभिः । सीदन् । श्येनः । न । योनिम् । आ ॥८१७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 817
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

१. (सूपस्थाभिः) = उत्तमता व सुगमता से उपस्थान के योग्य (धेनुभिः न) = गौओं के समान इन वेदवाणियों से तू (संमिश्लः भुवः) = युक्त हो । ये वेदवाणियाँ कठिन नहीं- ये सूपस्थ हैं, सुगमता से उपस्थान के योग्य हैं। जैसे एक उत्तम धेनु सुदोह्य होती है उसी प्रकार ये वाणियाँ भी सुदोह्य हैं— सुगमता से समझने योग्य हैं। तू इनके पास बैठ तो ? २. इन वेदवाणियों की उपासना से तू (अरुषः) = आरोचन: [नि० ३.७ अरुषं रूप] उत्तम रूपवाला हो । ३. (श्येनः न) = शंसनीय गतिवाला-सा बनकर तू ४. (योनिम् आसीदन्) = मूल हृदयदेश में स्थित होनेवाला हो, अर्थात् तू सारे ध्यान को केन्द्रित कर हृदय में प्रभु की उपासना करनेवाला बन । 'योनि' शब्द का अर्थ ‘वेदि' भी है। तू वेदि में स्थित हो, यज्ञादि उत्तम कर्मों को करनेवाला बन ।

भावार्थ -

हम वेदाध्ययन करें, क्रोधशून्य उत्तम रूपवाले हों, शंसनीय गतिवाले हों, हृदय में प्रभु की उपासना करें अथवा वेदियों में स्थित हो यज्ञ करनेवाले बनें ।

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