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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 901
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
सु꣣त꣡ ए꣢ति प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢꣫ त्विषिं꣣ द꣡धा꣢न꣣ ओ꣡ज꣢सा । वि꣣च꣡क्षा꣢णो विरो꣣च꣡य꣢न् ॥९०१॥
स्वर सहित पद पाठसु꣣तः꣢ । ए꣣ति । पवि꣡त्रे꣢ । आ । त्वि꣡षि꣢꣯म् । द꣡धा꣢꣯नः । ओ꣡ज꣢꣯सा । वि꣡च꣡क्षा꣢णः । वि꣣ । च꣡क्षा꣢꣯णः । वि꣣रो꣡चय꣢न् । वि꣣ । रोच꣡य꣢न् ॥९०१॥
स्वर रहित मन्त्र
सुत एति पवित्र आ त्विषिं दधान ओजसा । विचक्षाणो विरोचयन् ॥९०१॥
स्वर रहित पद पाठ
सुतः । एति । पवित्रे । आ । त्विषिम् । दधानः । ओजसा । विचक्षाणः । वि । चक्षाणः । विरोचयन् । वि । रोचयन् ॥९०१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 901
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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विषय - उत्तम व्याख्याता, ओजस्वी वक्ता
पदार्थ -
यह बृहन्मति (आ एति) = प्रजा के भीतर समन्तात् गति करता है । कैसा बनकर ? १. (सुतः) = [सुतमस्यास्ति इति] यज्ञ की भावनावाला – 'लोकहित की भावना' पहला मुख्य गुण है, जो प्रचारक के अन्दर आवश्यक है। अथवा सोम का उत्पादन करनेवाला । सोम, अर्थात् शक्ति के बिना ये किसी भी कार्य को क्या कर पाएगा ? २. (पवित्रः) = राग-द्वेष, मोह आदि मलों से रहित । औरों के समाने इसका जीवन ही तो आदर्श होगा। यदि इसका अपना जीवन मलिन होगा तो औरों को क्या पवित्र बनाएगा ? ३. (त्विषिं दधानः) = दीप्ति को धारण करता हुआ । यह दीप्ति ही सामान्य लोगों पर विशेष प्रभाव डालनेवाली होती है। चमकता हुआ चेहरा मुरझाये हुए चेहरे से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, ४. (ओजसा विचक्षाण:) = यह बड़ी ओजस्विता से विषय का व्याख्यान करता है । इसके बोलने का प्रकार बड़ा प्रभावशाली होता है, इसकी आवाज मरियल-सी न होकर बादल की गर्जना के समान होती है । ५. (विरोचयन्) = अपने शब्दों के प्रभाव से यह जनता के चेहरों पर उत्साह की चमक पैदा करता है और उनके हृदयों को ज्ञान के प्रकाश से भर देता है ।
भावार्थ -
बृहन्मति अपनी ज्ञान की ज्योति से औरों को भी ज्योतिर्मय कर डालता है।
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