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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 900
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
अ꣣य꣢꣫ꣳ स यो दि꣣व꣡स्परि꣢꣯ रघु꣣या꣡मा प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢ । सि꣡न्धो꣢रू꣣र्मा꣡ व्यक्ष꣢꣯रत् ॥९००॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । सः । यः । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । र꣡घुया꣡मा꣢ । र꣣घु । या꣡मा꣢꣯ । पवि꣡त्रे꣢ । आ । सि꣡न्धोः꣢꣯ । ऊ꣣र्मा꣢ । व्य꣡क्ष꣢꣯रत् । वि꣣ । अ꣡क्ष꣢꣯रत् ॥९००॥
स्वर रहित मन्त्र
अयꣳ स यो दिवस्परि रघुयामा पवित्र आ । सिन्धोरूर्मा व्यक्षरत् ॥९००॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । सः । यः । दिवः । परि । रघुयामा । रघु । यामा । पवित्रे । आ । सिन्धोः । ऊर्मा । व्यक्षरत् । वि । अक्षरत् ॥९००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 900
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - संयमी, स्फूर्तिमय, पवित्र
पदार्थ -
(अयम्) = यह बृहन्मति (सः) = वह है (यः) = जो (सिन्धोः) = शरीर में स्यन्दमान [बहनेवाले] रेत:कणों की (ऊर्मा) = ऊर्ध्वगति होने पर रघुयामा तीव्रगतिवाला, शीघ्रता से अपने कर्मों में व्याप्त होनेवाला (पवित्र:) = पवित्र जीवनवाला (दिवः) = अपने मस्तिष्करूप द्युलोक से (आपरिव्यक्षरत्) = सब प्रकार से, चारों ओर विविध ज्ञान की धाराओं को प्रवाहित करता है ।
यहाँ बृहन्मति की तीन विशेषताओं का उल्लेख है – १. वह सोम वा रेतस् की ऊर्ध्वगतिवाला हो। शरीर में ही सोम का पान करे जिससे ‘आङ्गिरस'=शक्तिशाली बना रहे, २. रघुयामा तीव्रता से मार्ग का आक्रमण करनेवाला हो– इसके जीवन से स्फूर्ति टपके। इसके जीवन की स्फूर्ति लोगों के जीवन में भी स्फूर्ति का संचार करेगी, ३. (पवित्रः) = यह पवित्र जीवनवाला हो । स्वयं पवित्र होकर भिन्न-भिन्न उपायों से सर्वत्र ज्ञान का प्रचार करे ।
भावार्थ -
संयमी, स्फूर्तिमय व पवित्र बनकर मैं विविध ज्ञानों का प्रकाश करूँ।
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