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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 899
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣣रिष्कृण्व꣡न्ननि꣢꣯ष्कृतं꣣ ज꣡ना꣢य या꣣त꣢य꣣न्नि꣡षः꣢ । वृ꣣ष्टिं꣢ दि꣣वः꣡ परि꣢꣯ स्रव ॥८९९॥
स्वर सहित पद पाठप꣣रिष्कृण्व꣢न् । प꣣रि । कृण्व꣢न् । अ꣡नि꣢꣯ष्कृतम् । अ । नि꣣ष्कृतम् । ज꣡ना꣢य । या꣣त꣡य꣢न् । इ꣡षः꣢꣯ । वृ꣣ष्टि꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व ॥८९९॥
स्वर रहित मन्त्र
परिष्कृण्वन्ननिष्कृतं जनाय यातयन्निषः । वृष्टिं दिवः परि स्रव ॥८९९॥
स्वर रहित पद पाठ
परिष्कृण्वन् । परि । कृण्वन् । अनिष्कृतम् । अ । निष्कृतम् । जनाय । यातयन् । इषः । वृष्टिम् । दिवः । परि । स्रव ॥८९९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 899
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - ज्ञान की वर्षा
पदार्थ -
यह बृहन्मति चारों ओर भ्रमण करता हुआ क्या करे – १. (अनिष्कृतम्) = अपरिष्कृत, अशिक्षित, असम्भय लोगों को (परिष्कृण्वन्) = परिष्कृत, शोभित व सभ्य बनाता हुआ विचरण करे । बृहन्मति का उद्देश्य यह है कि यह लोगों के जीवनों को बड़ा सुसंस्कृत कर दे– 'सत्य- शिव व सुन्दर' बना दे । २. इस उद्देश्य से वह (जनाय) = लोगों के लिए (इषः) = प्रेरणाओं को (यातयन्) = प्राप्त कराता है, सतत प्रेरणा ही लोगों के जीवन में परिवर्तन लाती है । ३. हे बृहन्मते ! तू (दिवः) = मस्तिष्करूपी द्युलोक से (वृष्टिम् परित्रव) = सर्वत्र ज्ञान की वर्षा करनेवाला हो। यह ज्ञान की वर्षा ही वासना-सन्तप्त लोगों को शान्ति देनेवाली होगी ।
भावार्थ -
बृहन्मति का कर्त्तव्य है कि वह १. लोगों के जीवन को संस्कृत बनाये, २. उन्हें निरन्तर प्रेरणा दे और ३. ज्ञान की वर्षा करे ।
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