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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 911
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
रा꣡जा꣢ना꣣व꣡न꣢भिद्रुहा ध्रु꣣वे꣡ सद꣢꣯स्युत्त꣣मे꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢स्थूण आशाते ॥९११॥
स्वर सहित पद पाठरा꣡जा꣢꣯नौ । अ꣡न꣢꣯भिद्रुहा । अन् । अ꣣भिद्रुहा । ध्रुवे꣢ । स꣡द꣢꣯सि । उ꣣त्तमे꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢स्थूणे । स꣣ह꣡स्र꣢ । स्थू꣣णे । आशातेइ꣡ति꣢ ॥९११॥
स्वर रहित मन्त्र
राजानावनभिद्रुहा ध्रुवे सदस्युत्तमे । सहस्रस्थूण आशाते ॥९११॥
स्वर रहित पद पाठ
राजानौ । अनभिद्रुहा । अन् । अभिद्रुहा । ध्रुवे । सदसि । उत्तमे । सहस्रस्थूणे । सहस्र । स्थूणे । आशातेइति ॥९११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 911
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - उत्, उत्तर तथा उत्तम घर
पदार्थ -
१. (राजानौ) = ये पति-पत्नी अपने को यथासम्भव अधिक-से-अधिक ज्ञानदीप्त बनाने का प्रयत्न करें । २. इनका जीवन बड़ा नियमित हो । मन्त्र के 'ऋतावृधा' शब्द के अनुसार इनका जीवन ऋत से बढ़नेवाला हो । ३. (अनभिद्रुहौ) = ये परस्पर तो द्रोहरहित हों ही—ये औरों से भी द्रोह न करनेवाले हों। सब पड़ोसियों के साथ भी इनका व्यवहार बड़ा मधुर हो । ये किसी के साथ भी शुष्क वैरविवाद करनेवाले न हों । ४. ये दोनों (सदसि) = घर में (आशाते) = [आसाते] विराजमान हों । पत्नी को घर की व्यवस्था के लिए घर पर रहना ही है, पति भी सदा प्रवास में ही रहनेवाले या सभामय जीवन-[club life] - वाले न हों – घर पर ही आनन्द लेनेवाले हैं। कैसे घर पर ? [क] (ध्रुवे) = जोकि ध्रुव है। जिसमें पति-पत्नी के संघर्ष के कारण अध्रुवता उत्पन्न नहीं हो जाती । [ख] (उत्तमे) = जो घर उत्तम है। जिस घर में प्राकृतिक आवश्यकताओं की परेशानी नहीं वह 'उत्' है, जिसमें परस्पर व्यवहार का माधुर्य भी है वह 'उत्तर' है और जहाँ प्रभु की अर्चना भी है वह 'उत्तम' है, [ग] (सहस्त्रस्थूणे) = हजारों स्तभों= आधारोंवाले घर में। जिस घर में सब आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित आधार विद्यमान हैं, वह घर शतशः स्तम्भोंवाला या सहस्रस्थूण कहा जाता है।
भावार्थ -
पति-पत्नी १. ज्ञान से दीप्त, २. नियमित जीवनवाले, ३. द्रोह से शून्य हों और घर १. ध्रुव, २. उत्तम तथा ३. सहस्रस्थूण हो- स्थिरतावाला, प्रभु अर्चनावाला तथा शतश: आधारोंवाला हो ।
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