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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 931
ऋषिः - रेभः काश्यपः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
4
ने꣣मिं꣡ न꣢मन्ति꣣ च꣡क्ष꣢सा मे꣣षं꣡ विप्रा꣢꣯ अभिस्व꣣रे꣢ । सु꣣दीत꣡यो꣢ वो अ꣣द्रु꣢꣫होऽपि꣣ क꣡र्णे꣢ तर꣣स्वि꣢नः꣣ स꣡मृक्व꣢꣯भिः ॥९३१॥
स्वर सहित पद पाठने꣣मि꣢म् । न꣢मन्ति । च꣡क्ष꣢꣯सा । मे꣣ष꣢म् । वि꣡प्राः꣢꣯ । वि । प्राः꣣ । अभिस्वरे꣢ । अ꣣भि । स्वरे꣢ । सु꣣दीत꣡यः꣢ । सु꣣ । दीत꣡यः꣢ । वः꣣ । अद्रु꣡हः꣢ । अ꣣ । द्रु꣡हः꣢꣯ । अ꣡पि꣢꣯ । क꣡र्णे꣢꣯ । त꣢रस्वि꣡नः꣢ । सम् । ऋ꣡क्व꣢꣯भिः ॥९३१॥
स्वर रहित मन्त्र
नेमिं नमन्ति चक्षसा मेषं विप्रा अभिस्वरे । सुदीतयो वो अद्रुहोऽपि कर्णे तरस्विनः समृक्वभिः ॥९३१॥
स्वर रहित पद पाठ
नेमिम् । नमन्ति । चक्षसा । मेषम् । विप्राः । वि । प्राः । अभिस्वरे । अभि । स्वरे । सुदीतयः । सु । दीतयः । वः । अद्रुहः । अ । द्रुहः । अपि । कर्णे । तरस्विनः । सम् । ऋक्वभिः ॥९३१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 931
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - 'प्रभु-मार्ग पञ्चक'
पदार्थ -
(नेमिम्) = उस सर्वजगन्नियन्ता [नी धातु से मि करके नेमि-नियन्ता= नेता], सर्वजगन्नेता (मेषम्) = सब शक्तियों वा सुखों का सेचन करनेवाले प्रभु को (चक्षसा) = ज्ञान व दर्शनपूर्वक (अभिस्वरे) = अपने अत्यन्त समीप [very close or near], अर्थात् हृदयदेश में ही (नमन्ति) = नमन करते हैं । कौन ?
१. (विप्राः) = विशेषरूप से अपना पूरण करनेवाले – अपनी न्यूनताओं को दूर करके अपने में सद्गुणों का सञ्चार करनेवाले । २. (सुदीतयः) = [दीयति: गतिकर्मा] उत्तम गति, अर्थात् सदा उज्ज्वल=पुण्य कर्मों में लगे हुए । ३. (वः अद्रुहः) = तुम्हारे न द्रोह करनेवाले । जो कभी भी किसी का भी बुरा नहीं चाहते। ४. (तरस्विनः) = वेगवाले अथवा बलवाले । जो द्रुत गति से जीवन-पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। अथवा जो शक्तिशाली हैं, वस्तुतः गति से ही उनमें शक्ति उत्पन्न हुई है ।५. (कर्णे समृक्वभिः अपि) = वे व्यक्ति भी आपकी ओर ही झुक रहे हैं जो कानों में सदा उत्तम ऋचाओं से युक्त होते हैं, अर्थात् जो सदा उत्तम स्तुति मन्त्रों का ही श्रवण करते हैं ।
भावार्थ -
प्रभु की उपासना 'ज्ञानी स्तोता'='काश्यप रेभ' ही करता है ।
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