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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 979
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
या꣢स्ते꣣ धा꣡रा꣢ मधु꣣श्चु꣡तोऽसृ꣢꣯ग्रमिन्द ऊ꣣त꣡ये꣢ । ता꣡भिः꣢ प꣣वि꣢त्र꣣मा꣡स꣢दः ॥९७९॥
स्वर सहित पद पाठयाः꣢ । ते꣣ । धा꣡राः꣢꣯ । म꣣धुश्चु꣡तः꣢ । म꣣धु । श्चु꣡तः꣢꣯ । अ꣡सृ꣢꣯ग्रम् । इ꣣न्दो । ऊत꣡ये꣢ । ता꣡भिः꣢꣯ । प꣣वि꣡त्र꣢म् । आ । अ꣣सदः ॥९७९॥
स्वर रहित मन्त्र
यास्ते धारा मधुश्चुतोऽसृग्रमिन्द ऊतये । ताभिः पवित्रमासदः ॥९७९॥
स्वर रहित पद पाठ
याः । ते । धाराः । मधुश्चुतः । मधु । श्चुतः । असृग्रम् । इन्दो । ऊतये । ताभिः । पवित्रम् । आ । असदः ॥९७९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 979
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - माधुर्य-स्त्राविणी वेदवाणियाँ
पदार्थ -
हे (इन्दो) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले प्रभो! (या:) = जो (ते) = तेरी (मधुश्चुतः) = माधुर्य के प्रवाहवाली (धाराः) = [धारा=वाङ्– नि० १.११.२] वेदवाणियाँ (ऊतये) = हमारी रक्षा के लिए (असृग्रम्) = सृजी गयी हैं, (ताभिः) = उनके साथ आप (पवित्रम्) = हमारे पवित्र हृदयप्रदेश में (आसदः) - विराजिए ।
९७६ मन्त्र में प्रभु के आसीन होने के लिए हृदय को पवित्र करने का उल्लेख था । ९७७ मन्त्र में उसी उद्देश्य से सात्त्विक अन्न के द्वारा सब इन्द्रियों को पवित्र करने का वर्णन है तथा ९७८ में वासनाओं से अपराजित रहकर हृदय को पूर्ण पवित्र किया गया और अब प्रस्तुत मन्त्र में प्रभु से उस पवित्र हृदय में आसीन होने के लिए प्रार्थना की गयी है, प्रभु की पवित्र, माधुर्य के प्रवाहवाली वाणियों का हमारे हृदयों में भी प्रकाश हो । इन वेदवाणियों के द्वारा ही हम अपने जीवनों को मलिन होने से बचा सकेंगे । वेदवाणी जीवन के लिए चार सूत्रों को उपस्थित करती है – १. प्रभु का स्तवन करो, मिलकर चलो [अग्निमीळे, सं गच्छध्वम्–‘ऋग्वेद'] । २. अन्न-प्राप्ति के लिए प्रयत्न करो, परन्तु उत्तम मार्ग से ही अर्जन करो [इषे त्वा, अग्ने नय सुपथा—'यजुर्वेद'] ३. प्रभु को प्रकाश के लिए हृदय में बिठाइए, भद्र शब्दों को ही सुनिए - निन्दात्मक शब्दों को नहीं [अग्न आ याहि, भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम–‘सामवेद'] । ४. वाचस्पति बनो– कम खाओ, कम बोलो तथा सोम को शरीर में ही सुरक्षित रक्खो [वाचस्पतिः; पिब सोमं ऋतुना–‘अथर्ववेद'] । इस जीवन की चतु:सूत्री द्वारा वेद हमारे जीवनों को मलिन होने से बचाता है।
भावार्थ -
माधुर्य स्राविणी वेदवाणियाँ मेरे जीवन को मधुर बना दें ।
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