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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 986
ऋषिः - उरुचक्रिरात्रेयः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ता꣡ वा꣢ꣳ स꣣म्य꣡ग꣢द्रुह्वा꣣णे꣡ष꣢मश्याम꣣ धा꣡म꣢ च । व꣣यं꣡ वां꣢ मित्रा स्याम ॥९८६॥
स्वर सहित पद पाठता । वा꣣म् । सम्य꣢क् । अ꣣द्रुह्वाणा । अ । द्रुह्वाणा । इ꣡ष꣢꣯म् । अ꣡श्याम । धा꣡म꣢꣯ । च꣣ । वय꣢म् । वा꣣म् । मित्रा । मि । त्रा । स्याम ॥९८६॥
स्वर रहित मन्त्र
ता वाꣳ सम्यगद्रुह्वाणेषमश्याम धाम च । वयं वां मित्रा स्याम ॥९८६॥
स्वर रहित पद पाठ
ता । वाम् । सम्यक् । अद्रुह्वाणा । अ । द्रुह्वाणा । इषम् । अश्याम । धाम । च । वयम् । वाम् । मित्रा । मि । त्रा । स्याम ॥९८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 986
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - इष् और धाम्
पदार्थ -
१. (ता) = वे मित्र और वरुण, अर्थात् प्राण व अपान (सम्यक्) = बड़े उत्तम प्रकार से (अद्रुह्वाणा) = किसी भी प्रकार हमारा द्रोह नहीं करते । इनकी साधना से हमारा नाश नहीं होता । २. हम (वाम्) = आपकी (इषम्) = शक्ति व स्फूर्ति को [strength, power, freshness] (अश्याम) = प्राप्त करें | आपकी साधना से हम अपने अन्दर शक्ति व स्फूर्ति को अनुभव करें। हमें अपने अन्दर थकावट अनुभव न हो । ३. (च) = और हम (वाम्) = आपकी (धाम) = ज्योति व तेज को [light, lustre, splendour] (अश्याम) = प्राप्त करें। प्राणापान की साधना से हमारी बुद्धि निर्मल होकर हमें प्रकाश का अनुभव हो । ४. (वयम्) = हम (वाम्) = आपके (मित्रा) = मित्र (स्याम) = हों, आपके स्नेही हों। हम प्राणापान के महत्त्व को समझकर उनकी साधना में रुचिवाले हों ।
भावार्थ -
प्राणापान की साधना से हमें शक्ति व प्रकाश प्राप्त हो ।
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