Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 20

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - वायुः छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    वायो॒ यत्ते॑ शो॒चिस्तेन॒ तं प्रति॑ शोच॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । यत् । ते॒ । शो॒चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । शो॒च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम्। द्वि॒ष्म: ॥२०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायो यत्ते शोचिस्तेन तं प्रति शोच यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति । यत् । ते । शोचि: । तेन । तम् । प्रति । शोच । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम्। द्विष्म: ॥२०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १,  २,  ३,  ४,  ५  एवं  मन्त्र संख्या के  केवल भावार्थ ही है |

    भावार्थ -

    वायु अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी वायु है। राजा क्रियाशीलता के द्वारा राष्ट्र में से बुराई को दूर करे। समाज में ज्ञानी प्रचारक भी 'वायु की भाँति गतिशील होता हुआ ज्ञानप्रसार द्वारा बुराई को दूर करे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top