Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 24

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - चतुष्पदा भुरिग्बृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    उप॑ब्दे॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः। यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ब्दे । पुन॑: । व॒: । य॒न्तु॒ । या॒तव॑: । पुन॑: । हे॒ति: । कि॒मी॒दि॒नी॒: । यस्य॑ । स्थ । तम् । अ॒त्त॒ । य: । व॒: । प्र॒ऽअहै॑त् । तम् । अ॒त्त॒ । स्वा । मां॒सानि॑ । अ॒त्त॒ ॥२४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपब्दे पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः। यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत्तमत्त स्वा मांसान्यत्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपब्दे । पुन: । व: । यन्तु । यातव: । पुन: । हेति: । किमीदिनी: । यस्य । स्थ । तम् । अत्त । य: । व: । प्रऽअहैत् । तम् । अत्त । स्वा । मांसानि । अत्त ॥२४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (उपब्दे) = [क्रूर शब्दकारिणी-सा०] क्रूर शब्द करने की वृत्ते! (किमीदिनी:) = डाका आदि मारने की वृत्तियो! (वः) =  तुम्हारे (यातवः) = पीड़ित करनेवाली राक्षसी वृत्ति के लोग (पुनः यन्तु) = फिर से तुम्हें ही प्राप्त हों। (हेति: पुन:) = तुम्हारे अस्त्र लौटकर तुमपर ही प्रहार करनेवाले हों। २. (यस्य स्थ) = तुम जिसके हो (तम् अत्त) = उसी को खाओ, (यः वः प्राहैत्) = जो तुम्हें भेजता है, (तम् अत) = उसे खाओ। (स्वा मांसानि अत्त) = अपने ही मांसों को खानेवाले बनो।

    भावार्थ -

    व्यर्थ के क्रूर शब्दों के उच्चारण करने की वृत्ति विनष्ट हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top