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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 99

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 99/ मन्त्र 2
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९९

    अ॒स्येदिन्द्रो॑ वावृधे॒ वृष्ण्यं॒ शवो॒ मदे॑ सु॒तस्य॒ विष्ण॑वि। अ॒द्या तम॑स्य महि॒मान॑मा॒यवोऽनु॑ ष्टुवन्ति पू॒र्वथा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य । इत् । इन्द्र॑: । व॒वृ॒धे॒ । वृष्ण्य॑म् । शव॑: । मदे॑ । सु॒तस्य॑ । विष्ण॑वि ॥ अ॒द्य । तम् । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मान॑म् । आ॒यव॑: । अनु॑ । स्तु॒व॒न्ति॒ । पू॒र्वऽथा॑ ॥९९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्येदिन्द्रो वावृधे वृष्ण्यं शवो मदे सुतस्य विष्णवि। अद्या तमस्य महिमानमायवोऽनु ष्टुवन्ति पूर्वथा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य । इत् । इन्द्र: । ववृधे । वृष्ण्यम् । शव: । मदे । सुतस्य । विष्णवि ॥ अद्य । तम् । अस्य । महिमानम् । आयव: । अनु । स्तुवन्ति । पूर्वऽथा ॥९९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 99; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    १. (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (सुतस्य अस्य) = उत्पन्न हुए-हुए इस सोम के (विष्णवि मदे) = शरीर में व्यात मद [उल्लास] के होने पर (इत्) = ही (वृष्ण्यं शवः) = शक्ति का सेचन करनेवाले अंग-प्रत्यंग को सशक्त बनानेवाले बल को (वावृधे) = अपने अन्दर बढ़ाता है। २. (आयवः) = गतिशील पुरुष (अस्य) = इस सोम की (तम्) = उस (महिमानम्) = महिमा को (पूर्वथा) = पहले की भाँति (अनुष्टुवन्ति) = स्तुत करते हैं। सोम का महत्त्व वेद में स्थान-स्थान पर उद्गीत हुआ है, सुरक्षित हुआ-हुआ सोम ही उत्कृष्ट जीवन का आधार बनता है।

    भावार्थ - सुरक्षित सोम शरीर के सब अंगों को सशक्त बनाता है। सोम की महिमा सदा वेदवाणियों से गाई जाती रही है। यह सोमी पुरुष उन्नति-पथ पर चलता हुआ अन्य मनुष्यों के साथ मिलकर चलता है, अतः यह 'नृमेध' कहलाता है [मेध संगमे]। इसका जीवन स्वार्थमय नहीं होता। यह 'नृमेध' ही अगले सूक्त का ऋषि है-

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