अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
सं वो॑ गो॒ष्ठेन॑ सु॒षदा॒ सं र॒य्या सं सुभू॑त्या। अह॑र्जातस्य॒ यन्नाम॒ तेना॑ वः॒ सं सृ॑जामसि ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । व॒: । गो॒ऽस्थेन॑ । सु॒ऽसदा॑ । सम् । र॒य्या । सम् । सुऽभू॑त्या । अह॑:ऽजातस्य । यत् । नाम॑ । तेन॑ । व॒: । सम् । सृ॒जा॒म॒सि॒॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सं वो गोष्ठेन सुषदा सं रय्या सं सुभूत्या। अहर्जातस्य यन्नाम तेना वः सं सृजामसि ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । व: । गोऽस्थेन । सुऽसदा । सम् । रय्या । सम् । सुऽभूत्या । अह:ऽजातस्य । यत् । नाम । तेन । व: । सम् । सृजामसि॥१४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
विषय - अहर्जात
पदार्थ -
१. हे गौओ! हम (व:) = तुम्हें (सुषदा) = [सुखेन सीदन्ति अत्र] सुखपूर्वक निवासवाली (गोष्ठने) = गोशाला से (संसृजामसि) = संसष्ट करते हैं, (रय्या) = [रयि-water] उत्तम जलों से (सम्) = संसृष्ट करते हैं, (सुभूत्या) = उत्पन्न होनेवाले उत्तम पदार्थों से (सम्) = संसृष्ट करते हैं। [सूयवसात.... पिब शुद्धमुदकम् । अथर्व० ७.७३.११] गौओं का निवास स्थान भी उत्तम [स्वच्छ] बनाते हैं, उत्तम घास [यवस्] खिलाते हैं, शुद्ध पानी पिलाते हैं। २. (अहर्जातस्य) = [अहनि अहनि जातं यस्मात्] प्रतिदिन जिसके द्वारा विकास होता है, उसका (यत् नाम) = जो नाम है (तेन) = उस नाम से (व: संसजामसि) = तुम्हें संसृष्ट करते हैं, अर्थात् इन गौ के दूध से प्रतिदिन सब शक्तियों का विकास होता है, अत: यह गौ भी 'अहर्जात' है।
भावार्थ -
गौओं का निवासस्थान भी साफ़-सुथरा हो, पानी भी शुद्ध हो, यवस् भी उत्तम हो। ऐसा होने पर ये गौएँ हमारे लिए अहर्जात' हो जाती हैं। इनके दुग्ध से प्रतिदिन सब शक्तियों का विकास होता है।
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