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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 136/ मन्त्र 1
    सूक्त - वीतहव्य देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशदृंहण सूक्त

    दे॒वी दे॒व्यामधि॑ जा॒ता पृ॑थि॒व्याम॑स्योषधे। तां त्वा॑ नितत्नि॒ केशे॑भ्यो॒ दृंह॑णाय खनामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वी । दे॒व्याम् । अधि॑ । जा॒ता । पृ॒थि॒व्याम् । अ॒सि॒ । ओ॒ष॒धे॒ । ताम् । त्वा॒ । नि॒ऽत॒त्नि॒ । केशे॑भ्य: । दृंह॑णाय । ख॒ना॒म॒सि॒ ॥१३६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवी देव्यामधि जाता पृथिव्यामस्योषधे। तां त्वा नितत्नि केशेभ्यो दृंहणाय खनामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवी । देव्याम् । अधि । जाता । पृथिव्याम् । असि । ओषधे । ताम् । त्वा । निऽतत्नि । केशेभ्य: । दृंहणाय । खनामसि ॥१३६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 136; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. हे (ओषधे) = नितत्नी नामक ओषधे! तू (देवी) = रोगों को जीतने की कामनावाली है, (देव्यां पृथिव्याम् अधिजाता असि) = तू दिव्य गुणों से युक्त इस पृथिवी में उत्पन्न हुई है। हे नितत्नि-नितन्वाने-न्यक प्रसरणशीले-नीचे की ओर फैलनेवाली ओषधे! तम् त्वा-उस तुझे केशेभ्य: दहणाय-केशों के दृढ़ीकरण के लिए खनामसि-खोदकर संग्रहीत करते हैं। २. हे ओषधे! तू प्रत्नान्-पुरातन केशों को दह-दृढ़ कर, अजातान् जनय-अनुत्पन केशों को उत्पन्न कर और जातान् उ-पैदा हुए-हुए को भी वर्षीयसः कृधि-प्रवृद्धतम व आयततम कर-दीर्घ बना।

    भावार्थ -

    नितत्नी नामक ओषधि के द्वारा केशों से सम्बद्ध विकारों को दूर किया जा सकता है। यह पुराने बालों को दृढ़ करती है, अजातों को उत्पन्न करती है तथा उत्पन्न बालों को लम्बा करने का साधन बनती है। इसी से इसका नाम नितली हुआ है।

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