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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 32 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 32/ मन्त्र 15
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इन्द्रो॑ या॒तोऽव॑सितस्य॒ राजा॒ शम॑स्य च शृ॒ङ्गिणो॒ वज्र॑बाहुः । सेदु॒ राजा॑ क्षयति चर्षणी॒नाम॒रान्न ने॒मिः परि॒ ता ब॑भूव ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । या॒तः । अव॑ऽसितस्य । राजा॑ । शम॑स्य । च॒ । शृ॒ङ्गिणः॑ । वज्र॑ऽबाहुः । सः । इत् । ऊँ॒ इति॑ । राजा॑ । क्ष॒य॒ति॒ । च॒र्ष॒णी॒नाम् । अ॒रान् । न । ने॒मिः । परि॑ । ता । ब॒भू॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो यातोऽवसितस्य राजा शमस्य च शृङ्गिणो वज्रबाहुः । सेदु राजा क्षयति चर्षणीनामरान्न नेमिः परि ता बभूव ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः । यातः । अवसितस्य । राजा । शमस्य । च । शृङ्गिणः । वज्रबाहुः । सः । इत् । ऊँ इति । राजा । क्षयति । चर्षणीनाम् । अरान् । न । नेमिः । परि । ता । बभूव॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 32; मन्त्र » 15
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 38; मन्त्र » 5
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 38; मन्त्र » 5
पदार्थ -
पदार्थ = ( वज्रबाहुः इन्द्रः ) = प्रबल भुजाओंवाला इन्द्र ( यातः ) = जङ्गम ( अवसितस्य ) = स्थावर ( शमस्य ) = शान्त ( च ) = और ( शृङ्गिणः ) = सींगवाले लड़ाके प्राणियों का भी ( राजा ) = राजा है। ( स इत् उ ) निश्चित वही ( चर्षणीनाम् )- सब मनुष्यों पर ( क्षयति ) = शासन करता है ( न ) = जैसे ( नेमिः ) = पहिये की धार ( अरान् ) = पहिये के अरों को ( परि बभूव ) = घेरे हुए है ऐसे ही ( ता ) = उन सब चर अचर को वही राजा ( परि बभूव ) = घेरे हुए है ।
भावार्थ -
भावार्थ = वह प्रबल राजा इन्द्र, स्थावर, जंगम, शान्त और लड़ाके प्राणियों पर भी शासन कर रहा है। जैसे रथचक्र की धार, सब अरों को घेरे हुए है ऐसे ही वह इन्द्र जगत् के जड़ चेतन प्राणी अप्राणी सब को घेरे हुए हैं। उस इन्द्र के शासन में ही सब मनुष्य पशु पक्षी आदि वर्त्तमान हैं उसके शासन का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता।
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