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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 9
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शं नो॑ भवत्वर्य॒मा। शं न॒ इन्द्रो॒ बृह॒स्पतिः॒ शं नो॒ विष्णु॑रुरुक्र॒मः ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । मि॒त्रः । शम् । वरु॑णः॒ । शम् । नः॒ । भ॒व॒तु॒ । अ॒र्य॒मा । शम् । नः॒ । इन्द्रः॑ । बृह॒स्पतिः॑ । शम् । नः॒ । विष्णुः॑ । उ॒रु॒ऽक्र॒मः ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। मित्रः। शम्। वरुणः। शम्। नः। भवतु। अर्यमा। शम्। नः। इन्द्रः। बृहस्पतिः। शम्। नः। विष्णुः। उरुऽक्रमः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 9
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
पदार्थ -
पदार्थ = ( मित्र: ) = सबसे स्नेह करनेवाला परमात्मा ( नः ) = हमारे लिए ( शम् ) = शांतिदायक हो ( वरुणः ) = सर्व उत्तम प्रभु ( शम् ) = शान्तिदायक हो ( अर्यमा ) = यम, न्यायकारी जगत्पति ( न: ) = हमारे लिए ( शम् ) = सुखदायक हो ( इन्द्रः ) = परम ऐश्वर्यवाला महाबली जगदीश ( नः शम् ) = हमारे लिए कल्याणदाता हो ( बृहस्पति: ) = बड़े-बड़े सूर्य चन्द्रादिकों का और वेदवाणी का स्वामी परमेश्वर, हमारे लिए कल्याणकारी हो ( उरुक्रमः ) = महाबली ( विष्णुः ) सर्वव्यापक अन्तर्यामी परमात्मा ( नः शम् ) = हमें बल देकर सदा सुखी बनावें ।
भावार्थ -
भावार्थ = मित्र, वरुण, अय्यर्मा, इन्द्र, बृहस्पति, विष्णु आदि परमात्मा के अनन्त नाम हैं, ये सब सार्थक हैं निरर्थक एक भी नहीं । अनन्त शक्ति, अनन्त गुण और अनन्त ही ज्ञानवाले जगत्पिता में जगत् का उत्पन्न करना, अपने सब भक्तों को ज्ञान और शान्ति देकर उनका लोक परलोक सुधारना इत्यादि सब घट सकते हैं ।
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