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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सोम॑ गी॒र्भिष्ट्वा॑ व॒यं व॒र्धया॑मो वचो॒विद॑:। सु॒मृ॒ळी॒को न॒ आ वि॑श ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑ । गीः॒ऽभिः । त्वा॒ । व॒यम् । व॒र्धया॑मः । व॒चः॒ऽविदः॑ । सु॒ऽमृ॒ळी॒कः । नः॒ । आ । वि॒श॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोम गीर्भिष्ट्वा वयं वर्धयामो वचोविद:। सुमृळीको न आ विश ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम। गीःऽभिः। त्वा। वयम्। वर्धयामः। वचःऽविदः। सुऽमृळीकः। नः। आ। विश ॥ १.९१.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 11
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    पदार्थ = हे सोम !  ( वचोविदः ) = वेद शास्त्रादिकों के वचनों के ज्ञाता  ( वयम् ) = हम लोग  ( गीर्भिः ) = अनेक स्तुति समूहों से  ( त्वा ) = आपको  ( वर्द्धयामः ) = बढ़ाते अर्थात् सर्वोपरि विराजमान मानते हैं  ( सुमृडीकः ) = उत्तम सुख के दाता आप  ( नः ) = हम लोगों को  ( आविश ) = प्राप्त होओ।

     

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे वेदवेद्य परमात्मन्! वेदादि श्रेष्ठ विद्या के ज्ञाता हम लोग, आपकी अनेक पवित्र वेद मन्त्रों से महिमा को गाते हुए, सर्वशक्तिमान्, सृष्टिकर्त्ता, अन्तर्यामी आपके ध्यान में निमग्न होते हैं । दयामय प्रभो! हम आपकी कृपा से अपने हृदय में आपको अनुभव करें, जिससे हम लोग सदा सुखी होवें। क्योंकि आपकी वाणी रूपी वेद में लिखा है 'तमेव विदित्वाऽति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय' अर्थात् उस प्रभु को जान कर ही मनुष्य मृत्यु से पार हो जाता है। मुक्ति के लिए और कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
     

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