ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 11
सोम॑ गी॒र्भिष्ट्वा॑ व॒यं व॒र्धया॑मो वचो॒विद॑:। सु॒मृ॒ळी॒को न॒ आ वि॑श ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑ । गीः॒ऽभिः । त्वा॒ । व॒यम् । व॒र्धया॑मः । व॒चः॒ऽविदः॑ । सु॒ऽमृ॒ळी॒कः । नः॒ । आ । वि॒श॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोम गीर्भिष्ट्वा वयं वर्धयामो वचोविद:। सुमृळीको न आ विश ॥
स्वर रहित पद पाठसोम। गीःऽभिः। त्वा। वयम्। वर्धयामः। वचःऽविदः। सुऽमृळीकः। नः। आ। विश ॥ १.९१.११
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 11
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे सोम यतः सुमृळीको वैद्यस्त्वं नोऽस्मानाविश तस्मात् त्वा त्वां वचोविदो वयं गीर्भिर्नित्यं वर्द्धयामः ॥ ११ ॥
पदार्थः
(सोम) विज्ञातव्यगुणकर्मस्वभाव ! (गीर्भिः) विद्यासुसंस्कृताभिर्वाग्भिः (त्वा) त्वाम् (वयम्) (वर्धयामः) (वचोविदः) विदितवेदितव्याः (सुमृळीकः) सुष्ठु सुखकारी (नः) अस्मान् (आ) आभिमुख्ये (विश) ॥ ११ ॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। न हीश्वरविद्वदोषधिगणैस्तुल्यः प्राणिनां सुखकारी कश्चिद्वर्त्तते तस्मात्सुशिक्षाध्ययनाभ्यामेतेषां बोधवृद्धिं कृत्वा तदुपयोगश्च मनुष्यैर्नित्यमनुष्ठेयः ॥ ११ ॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।
पदार्थ
हे (सोम) जानने योग्य गुण, कर्म, स्वभावयुक्त परमेश्वर ! जिस कारण (सुमृळीकः) अच्छे सुखके करनेवाले वैद्य आप और सोम आदि ओषधिगण (नः) हमलोगों को (आ) (विश) प्राप्त हो, इससे (त्वा) आपको और उस ओषधिगण को (वचोविदः) जानने योग्य पदार्थों को जानते हुए (वयम्) हम (गीर्भिः) विद्या से शुद्ध की हुई वाणियों से नित्य (वर्द्धयामः) बढ़ाते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। ईश्वर, विद्वान् और ओषधि समूह के तुल्य प्राणियों को कोई सुख करनेवाला नहीं है, इससे उत्तम शिक्षा और विद्याऽध्ययन से उक्त पदार्थों के बोध की वृद्धि करके मनुष्यों को नित्य वैसे ही आचरण करना चाहिये ॥ ११ ॥
पदार्थ
पदार्थ = हे सोम ! ( वचोविदः ) = वेद शास्त्रादिकों के वचनों के ज्ञाता ( वयम् ) = हम लोग ( गीर्भिः ) = अनेक स्तुति समूहों से ( त्वा ) = आपको ( वर्द्धयामः ) = बढ़ाते अर्थात् सर्वोपरि विराजमान मानते हैं ( सुमृडीकः ) = उत्तम सुख के दाता आप ( नः ) = हम लोगों को ( आविश ) = प्राप्त होओ।
भावार्थ
भावार्थ = हे वेदवेद्य परमात्मन्! वेदादि श्रेष्ठ विद्या के ज्ञाता हम लोग, आपकी अनेक पवित्र वेद मन्त्रों से महिमा को गाते हुए, सर्वशक्तिमान्, सृष्टिकर्त्ता, अन्तर्यामी आपके ध्यान में निमग्न होते हैं । दयामय प्रभो! हम आपकी कृपा से अपने हृदय में आपको अनुभव करें, जिससे हम लोग सदा सुखी होवें। क्योंकि आपकी वाणी रूपी वेद में लिखा है 'तमेव विदित्वाऽति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय' अर्थात् उस प्रभु को जान कर ही मनुष्य मृत्यु से पार हो जाता है। मुक्ति के लिए और कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे (सोम) सर्वजगदुत्पादकेश्वर! (त्वा) आपको (वचोविदः) शास्त्रवित् (वयम्) हम लोग (गीर्भिः) स्तुतिसमूह से (वर्धयामः) सर्वोपरि विराजमान मानते हैं। (सुमृळीकः, नः आविश), क्योंकि हमको सुष्ठु सुख देनेवाले आप ही हो, सो कृपा करके हमको आप आवेश करो', जिससे हम लोग अविद्यान्धकार से छूट और विद्या सूर्य को प्राप्त होके आनन्दित हों ॥ ३६ ॥
टिपण्णी
१. हृदय में प्रवेश करो ।
विषय
प्रभु की सुमृळीकता
पदार्थ
१. हे (सोम) = शान्त प्रभो ! (वचोविदः) = स्तुतिवचनों को जाननेवाले, वेदवाणी को प्राप्त करनेवाले (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (गीर्भिः) = इन स्तुतिवचनों से (वर्धयामः) = बढ़ाते हैं, आपके यश को चारों ओर फैलाते हैं । (सुमृळीकः) = उत्तम सुख देनेवाले आप (नः) = हमें (आविश) = प्राप्त होओ । २. हम प्रभु का स्तवन करते हैं, प्रभु हममें प्रविष्ट होते हैं, अर्थात् प्रभुस्तवन से वे स्तुतिवचन हमारे सामने एक लक्ष्यदृष्टि को पैदा करते हैं । उस लक्ष्य की ओर चलने से हममें दिव्यगुण वृद्धि को प्राप्त करते हैं । उन दिव्यगुणों का हममें प्रवेश ही प्रभु का प्रवेश है । इस प्रवेश के अनुपात में हमारा जीवन सुखी होता है ।
भावार्थ
भावार्थ = हम प्रभु का स्तवन करते हैं । स्तुति से प्रभु के गुण हममें प्रविष्ट होते हैं । इस दिव्यता के प्रवेश से हमारा जीवन सुखी होता है ।
विषय
पक्षान्तर में उत्पादक परमेश्वर और विद्वान् का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( सोम ) सकल जगत् के उत्पादक परमेश्वर ! ( वयम् ) हम ( वचोविदः ) स्तुतिवचन कहने में चतुर, वाग्मी पुरुष (वा) तुझको ( गीर्भिः ) वाणियों से ( वर्धयामः ) बढ़ावें । तेरी महिमा को बढ़ावें । तू ( नः ) हमें ( सुमृळीकः ) उत्तम सुखप्रद होकर ( आविश ) प्राप्त हो । (२) हे ( सोम ) सावित्री वेद-माता के गर्भ से उत्पन्न होने वाले ! शिष्य जन ! ( वयं वचोविदः ) विद्या युक्त वाणियों, प्रवचनों को जानने हारे होकर ( त्वां ) तुझको (गीर्भिः) उत्तम ज्ञानमय वाणियों से ( वर्धयामः ) बढ़ावें, तुझे अधिक ज्ञानवान् करें, तू (सुमृळीकः) गुरुजनों का उत्तम सुखदायी, प्रिय शिष्य होकर ( नः ) हमारे पास ( आविश ) आकर रह । शिष्यगण माता सावित्री के गर्भ तथा आश्रय में प्रविष्ट हो । स्तुतिकर्त्ता विद्वान् जन राजा सोम को उपदेश देकर ज्ञानवान् करें और वह प्रजा में सुखकारी होकर रहे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्दः—१, ३, ४ स्वराट्पङ्क्तिः ॥ - २ पङ्क्तिः । १८, २० भुरिक्पङ्क्तिः । २२ विराट्पंक्तिः । ५ पादनिचृद्गायत्री । ६, ८, ९, ११ निचृद्गायत्री । ७ वर्धमाना गायत्री । १०, १२ गायत्री। १३, १४ विराङ्गायत्री । १५, १६ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री । १७ परोष्णिक् । १९, २१, २३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. ईश्वर, विद्वान व औषधी समूहासारखे प्राण्यांना सुखी करणारे कोणी नसते. त्यासाठी उत्तम शिक्षण व विद्याऽध्ययनाने वरील पदार्थांच्या ज्ञानात वाढ करून माणसांनी नित्य तसे आचरण करावे. ॥ ११ ॥
विषय
स्तुती
व्याखान
हे (सोम) सृष्टीचे सृजन करणाऱ्या ईश्वरा ! (वचोविदः) शास्त्रानुसार आम्ही तुझी सतत स्तुती करून (वर्द्धयामः) सर्व तऱ्हेने तुला शोभायमान मानतो. (सुमृळीकः नः आविश) कारण आम्हाला उत्तम सुख देणारा तूच आहेस. म्हणून कृपा करून आम्हाला प्रोत्साहित कर जेणेकरून आम्ही विच अंधःकारातून सुटावे व विद्यारूपी सूर्यास प्राप्त होऊन आनंदित रहावे. ॥३६॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Soma, lord of health and well-being, we praise, celebrate and extol you in the words we know, which describe your virtues and powers. Harbinger of peace and well-being, come and be with us.
Purport
O Soma The Creator of the whole universe! We, well-versed in the Vedic Lore, glorify you and regard you to be the highest-most beatific above all, because you are the bestower of highest bliss on us, therefore, kindly be seated in our heart and inspire us to get-rid of ignorance and attain true knowledge, and be blissful.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
(1) O Soma-God! Thou who art Benign or Giver of " good happiness, enter our hearts. (Let us realise Thy presence with in ourselves). Knowing the essence of the Vedic speech, we glorify and augment Thee with our refined and cultured words of praise. (Let us increase the number of God's true devotees).(2) It is also applicable to the Vaidya (Physician of peaceful disposition) who enters our hearts or understands our feelings well and helps us to grow harmoniously, being always a source of happiness to us.(3) Let us praise the attributes of Soma-a beneficial herb, which increases our physical and mental powers.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(गीर्भि:) विद्यासुसंस्कृताभि: वाग्भिः = With refined and cultured words through good education. (सुमृडीक:) सुष्ठु सुखकारी = Giver of good happiness. (मृड-सुखने) ।
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is no one who is greater source of happiness to men than God, a great scholar and good medicines. Therefore proper knowledge of these three should be acquired through good education and developed and that should be applied properly.
बंगाली (1)
পদার্থ
সোম গীর্ভিষ্ট্বা বয়ং বর্দ্ধয়ামো বচোবিদঃ।
সৃমুডীকো ন আবিশ।।৬৯।।
(ঋগ্বেদ ১।৯১।১১)
পদার্থঃ (সোম) হে পরমাত্মা! (বচোবিদঃ) বেদ-শাস্ত্রাদি বচনের জ্ঞাতা (বয়ম্) আমরা সবাই (গীর্ভিঃ) আমাদের স্তুতিসমূহ দ্বারা (ত্বা) তোমার (বর্দ্ধয়ামঃ) যশ বৃদ্ধি করি। (সুমৃডীকঃ) উত্তম সুখের দাতা তুমিই (নঃ) আমাদের সকলের (আবিশ) প্রাপ্ত হও।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে বেদদাতা পরমাত্মা! বেদাদি শ্রেষ্ঠ বিদ্যার জ্ঞাতা আমরা তোমার অনেক পবিত্র বেদ মন্ত্র দ্বারা তোমার মহিমার গান করে সর্বশক্তিমান সৃষ্টিকর্তা অন্তর্যামী তোমার ধ্যানে নিমগ্ন হয়ে থাকি। হে দয়াময় প্রভু! আমরা তোমার কৃপা দ্বারা আপন হৃদয়ে তোমার অনুভব করি, যাতে আমরা সদা সুখী হতে পারি । কেননা তোমার বাণীরূপী বেদে লিখিত যে- "তমেব বিদিত্বাঽতি মৃত্যুমেতি নান্যঃ পন্থা বিদ্যতেঽয়নায়" অর্থাৎ তাঁকে জেনেই কেবল মনুষ্য মৃত্যুকে অতিক্রম করতে পারে, মুক্তির জন্য আর কোন দ্বিতীয় পথ নেই।।৬৯।।
नेपाली (1)
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
हे सोम सर्वजगदुत्पारकेश्वर ! त्वा = तपाईंलाई वचोविधः= 'शास्त्रवित् वयम्= हामीहरु गीर्भिः - स्तुति समूह द्वारा वर्धयामः=सर्वोपरिविराजमानमान्दछौं। सुमृळीकः, न: आविश= किनकि हामीलाई सुष्ठु सुख प्रदान गर्ने हजुरनै हुनुहुन्छ, अतः कृपागरेर हाम्रो हृदय मा प्रवेश गरी विराजमान हुनुहोस्, जसले हामीहरु अविद्यान्धकार बाट छुटि विद्या सूर्य मा प्राप्त भई आनन्दित हौं ॥३६॥
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