ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 5
त्वं सो॑मासि॒ सत्प॑ति॒स्त्वं राजो॒त वृ॑त्र॒हा। त्वं भ॒द्रो अ॑सि॒ क्रतु॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । सो॒म॒ । अ॒सि॒ । सत्ऽप॑तिः । त्वम् । राजा॑ । उ॒त । वृ॒त्र॒ऽहा । त्वम् । भ॒द्रः । अ॒सि॒ । क्रतुः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं सोमासि सत्पतिस्त्वं राजोत वृत्रहा। त्वं भद्रो असि क्रतु: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। सोम। असि। सत्ऽपतिः। त्वम्। राजा। उत। वृत्रऽहा। त्वम्। भद्रः। असि। क्रतुः ॥ १.९१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 5
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स सोम कीदृश इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे सोम यतस्त्वमयं सोमो वा सत्पतिरस्युतापि त्वमयं च वृत्रहा च राजासि अस्ति वा यतस्त्वमयं च भद्रोऽसि भवति वा क्रतुरसि भवति वा तस्मात् त्वमयं च विद्वद्भिः सेव्यः ॥ ५ ॥
पदार्थः
(त्वम्) परमेश्वरः शालाध्यक्ष ओषधिराजो वा (सोम) सकलजगदुत्पादक सर्वविद्याप्रद सर्वौषधिगुणप्रदो वा (अस्ति) वा (सत्पतिः) सतोऽविनाशिनः कारणस्य विद्यमानस्य कार्य्यस्य सत्यपथ्यकारिणां वा पालकः (त्वम्) (राजा) सर्वाध्यक्षो विद्याध्यक्षो रोगनाशकगुणप्रकाशको वा (उत) अपि (वृत्रहा) यो दुःखप्रदान् शत्रून् मेघदोषान्वा हन्ति सः (त्वम्) (भद्रः) कल्याणकारकः सेवनीयो वा (असि) भवति वा (क्रतुः) प्रज्ञामयः प्रज्ञाप्रदः प्रज्ञाहेतुर्वा ॥ ५ ॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। परमेश्वरो विद्वान् सोमलताद्योषधिगणो वा सर्वैश्वर्यप्रकाशकः सतां रक्षकोऽधिपतिर्दुःखविनाशको विज्ञानप्रदः कल्याणकार्य्यस्तीति सम्यग्विदित्वा सेव्यः ॥ ५ ॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर वह सोम कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (सोम) समस्त संसार के उत्पन्न करने वा सब विद्याओं के देनेवाले ! (त्वम्) परमेश्वर वा पाठशाला आदि व्यवहारों के स्वामी विद्वान् आप (सत्पतिः) अविनाशी जो जगत् कारण वा विद्यमान कार्य्य जगत् है, उसके पालनेहारे (असि) हैं (उत) और (त्वम्) आप (वृत्रहा) दुःख देनेवाले दुष्टों के विनाश करनेहारे (राजा) सबसे स्वामी विद्या के अध्यक्ष हैं वा जिस कारण (त्वम्) आप (भद्रः) अत्यन्त सुख करनेवाले हैं वा (क्रतुः) समस्त बुद्धियुक्त वा बुद्धि देनेवाले (असि) हैं, इसीसे आप सब विद्वानों के सेवने योग्य हैं ॥ ५ ॥द्वितीय-(सोम) सब ओषधियों का गुणदाता सोम ओषधि (त्वम्) यह ओषधियों में उत्तम (सत्पतिः) ठीक-ठीक पथ्य करनेवाले जनों की पालना करनेहारा है (उत) और (त्वम्) यह सोम (वृत्रहा) मेघ के समान दोषों का नाशक (राजा) रोगों के विनाश करने के गुणों का प्रकाश करनेवाला है वा जिस कारण (त्वम्) यह (भद्रः) सेवने के योग्य वा (क्रतुः) उत्तम बुद्धि का हेतु है, इसी से वह सब विद्वानों के सेवने के योग्य है।
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। परमेश्वर, विद्वान्, सोमलता आदि ओषधियों का समूह, ये समस्त ऐश्वर्य को प्रकाश करने, श्रेष्ठों की रक्षा करने और उनके स्वामी, दुःख का विनाश करने, और विज्ञान के देनेहारे और कल्याणकारी हैं, ऐसा अच्छी प्रकार जान के सबको इनका सेवन करना योग्य है ॥ ५ ॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( सोम ) = सकल जगत् उत्पादक और सत्कर्मों में प्रेरक शान्तस्वरूप शान्तिदायक परमात्मन् ! ( त्वम् सत्पतिः असि ) = आप सत्पुरुषों के पालन करनेवाले हो आप ही सबके ( राजा ) = स्वामी ( उत ) = और ( वृत्रहा ) = मेघों के रचक, धारक और मारक हो ( त्वम् भद्रः असि ) = आप कल्याणस्वरूप, कल्याणकारक और ( क्रतुः ) = सबके कर्ता हो ।
भावार्थ
भावार्थ = हे सकल ब्रह्माण्डों के उत्पन्न करनेवाले, सत्कर्मों में प्रेरक और शान्ति देनेवाले सोम परमात्मन् ! आप श्रेष्ठ पुरुषों के पालन करनेवाले, सब चर और अचर जगत् के राजा और मेघों के उत्पादक धारक और मारक हो । आप कल्याणस्वरूप, अपने भक्तों का कल्याण करनेवाले और सारे जगत् के उत्पन्न करनेवाले हो ।
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
"सोम" हे सोम राजन् ! सत्पते! परमेश्वर ! (त्वम्) तुम (सोमः) सोम, सर्वसवनकर्त्ता- सबका सार निकालनेहारे, प्राप्यस्वरूप, शान्तात्मा (असि) हो तथा (त्वं सत्पतिः) आप सत्पुरुषों का प्रतिपालन करनेवाले हो, तुम्हीं (राजा) सबके राजा (उत) और (वृत्रहा) मेघ के रचक, धारक और मारक हो, (त्वम्) आप (भद्रः) भद्रस्वरूप, भद्र करनेवाले और (क्रतुः) सब जगत् के कर्त्ता (असि) आप ही हो ॥ १९ ॥
विषय
'राजा' उत 'वृत्रहा'
पदार्थ
१. हे (सोम) = शान्त प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (सत्पतिः) = सज्जनों के रक्षक (असि) = हो । हमारा कर्तव्य सज्जन बनना है । सज्जन बनकर हम आपकी रक्षा के पात्र हो ही जाते हैं । २. (त्वं राजा) = आप ही राजा हो, सारे ब्रह्माण्ड का शासन कर रहे हो । आपके शासन को हम कैसे लाँघ सकते हैं । सब सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथिवी व नदियाँ इत्यादि आपके ही शासन में अपने = अपने मार्ग का आक्रमण करते हुए चल रहे हैं । ३. (उत) = और हमारे जीवनों में आप ही (वृत्रहा) = वृत्र का विनाश करनेवाले हो । कामवासना 'वृत्र' है । यह हमारे ज्ञान पर एक आवरण के रूप में आयी रहती है । आपकी कृपा से ही इसका विध्वंस होता है । ३. हे प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (भद्रः) = कल्याण और सुख प्राप्त करानेवाले हैं, (क्रतुः असि) = आप ही कर्म व प्रज्ञान हैं । आपकी शक्ति से ही सब यज्ञादि कर्म हुआ करते हैं - 'अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च' [गीता ९/२४] । आप ही सम्पूर्णज्ञान के स्रोत हैं और सृष्टि के आरम्भ में वेदज्ञान देते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = प्रभु ही 'सत्पति, राजा, वृत्रहा, भद्र व क्रतु' हैं । प्रभुभक्त होने के लिए हम सत्कर्मों का सेवन करें, व्यवस्थित जीवनवाले हों, वासना को नष्ट करें, सबका कल्याण व सुख करनेवालें हों तथा ज्ञान का सञ्चय करें ।
विषय
उसी का सोम रूप से वर्णन ।
भावार्थ
हे ( सोम ) सब जगत् के उत्पादक परमेश्वर ! ( त्वं ) तू ( सत् पतिः ) नित्य कारण, विद्यमान कार्य और सज्जनों का पालक ( असि ) है । ( त्वं ) तू (राजा) सब का प्रकाशक, सब का अधिपति, राजा ( उत ) और ( वृत्रहा ) सूर्य के समान अज्ञान आवरण का नाश करने वाला है । तू ( रुद्रः ) सबको सुख और कल्याणकारी सबके सेवने योग्य और ( क्रतुः ) ज्ञानवान्, कर्मसामर्थ्यवान् ( असि ) है । (२) इसी प्रकार विद्वान्, राजा सद्गणों का, सज्जनों का पति, ( वृत्रहा ) शत्रुनाशक ( भद्रः ) सज्जन और कर्मण्य हो । (३) सोम नाम ओषधि रस और शरीर में शुक्र दोनों सद्गुणों के पालक, रोगनाशक, सुखकारक, सेवन करने योग्य और बल बुद्धि के वर्धक हैं । इत्येकोनविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्दः—१, ३, ४ स्वराट्पङ्क्तिः ॥ - २ पङ्क्तिः । १८, २० भुरिक्पङ्क्तिः । २२ विराट्पंक्तिः । ५ पादनिचृद्गायत्री । ६, ८, ९, ११ निचृद्गायत्री । ७ वर्धमाना गायत्री । १०, १२ गायत्री। १३, १४ विराङ्गायत्री । १५, १६ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री । १७ परोष्णिक् । १९, २१, २३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. परमेश्वर, विद्वान, सोमलता इत्यादी औषधींचा समूह हे संपूर्ण ऐश्वर्य देणारे, श्रेष्ठांचे रक्षण करणारे, अधिपती, दुःखांचा नाश करणारे व विज्ञान देणारे, कल्याणकारी आहेत हे चांगल्या प्रकारे जाणून सर्वांनी त्यांचा अंगीकार करणे योग्य आहे. ॥ ५ ॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हे (सोम) , राजा, सत्पती अशा ईश्वरा ! तू सोम आहेस सर्व गोष्टीचे सार काढणारा असा शान्तस्वरूप व शांत आत्मा आहेस. तसेच सत्पुरुषांचे प्रतिपालन करणारा आहेस. तूच सर्वांचा राजा (उत) आणि (वृत्रहा) मेघांचा रक्षक, धारक, व मारक आहेस. तुझे स्वरूप भद्र असल्यामुळे भद्रच करणारा आहेस. व (क्रतुः) सर्व जगाचा कर्ता तूच आहेस. ॥१९॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Soma, you are the lord and ruler of the ultimate and essential reality of existence. You are the ruler and controller of the negativities of existence and a breaker of the clouds of rain. You are the ultimate good and kind father, lord of yajna, omniscient, giver of knowledge, creator of knowledge and yajna.
Purport
O King! Protector of truth O Supreme Lord! You are the Extractor of the essence of all gross matter. You are of accessible nature. You are calm. You are the protector of righteous persons. You are the King of all. You are also the Framer, propeller and splitter of the clouds. You are of auspicious nature. You always do good and you alone are the creator of the world.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is that Soma is taught further in the fifth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
(1) O God Creator of the world! Thou art the Protector of good people. Thou art slayer of all ignorance and sins and Sovereign Lord of the Universe. Thou art most Auspicious and Omniscient. Therefore we adore Thee. (2) It is applicable also to an Acharya or Head of an educational institution who should be of peaceful disposition, shining with his virtues, slayer of ignorance and sin, auspicious or bringer of happiness and giver of wisdom. Therefore we serve him.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(सोम) (१) सकल जगदुत्पादक परमेश्वर (२) सर्वविद्याप्रद शालाध्यक्ष (३) सर्वोषधिगुरणप्रद ओषधि राजः । (1) God the Creator of the world. (2) Head of an educational institution giver of all knowledge, (3) Soma-a herb destroyer of diseases and highly beneficial.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is Shleshalankara in this Mantra. God is the protector of righteous people. He is the lord, Destroyer of all miseries, Giver of knowledge and source of happiness. Scholars should also be like Him, protectors, dispellers of all darkness of ignorance, bringing about the welfare of all. Soma plant is destroyer of many diseases and source of health and happiness caused by it. It augments intellectual and physical power. It is therefore to be used in prescribed manner.
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বং সোমাসি সৎপতিস্ত্বং রাজোত বৃত্রহা ।
ত্বং ভদ্রো অসি ক্রতুঃ।।৬৬।।
(ঋগ্বেদ ১।৯১।৫)
পদার্থঃ হে পরমাত্মা! (ত্বম্) তুমি (সোম) সকল জগৎ উৎপাদক এবং সৎকর্মে প্রেরক শান্তস্বরূপ শান্তিদায়ক। (ত্বম্ সৎপতিঃ অসি) তুমি সৎপুরুষের পালনকারী। তুমিই সকলের (রাজা) শাসক (উত) এবং (বৃত্রহা) মেঘের রচনাকারী, ধারক ও বর্ষণকারী। (ত্বম্ ভদ্রঃ অসি) তুমি কল্যাণস্বরূপ কল্যাণকারক এবং (ক্রতুঃ) সকলের কর্তা ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে সকল ব্রহ্মাণ্ডের উৎপাদক, সৎকর্মে প্রেরক ও শান্তি প্রদানকর্তা সোম পরমাত্মা! তুমি শ্রেষ্ঠ পুরুষের পালনকর্তা, সকল চর ও অচর জগতের রাজা এবং মেঘের উৎপাদক ধারক ও বর্ষণকারী। তুমি কল্যাণস্বরূপ, সকলের কল্যাণকারী এবং সমগ্র জগতের উৎপন্ন কর্তা তুমিই।।৬৬।।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
सोम= हे सोम राजन ! सत्पते ! परमेश्वर ! त्वम्= तपाईं सोमः = सोम, सर्वसवनकर्ता- सबैको सार निकाल्नु हुने, प्राप्यस्वरूप शान्तात्मा असि = हुनुहन्छ तथा त्वं सत्पति : = तपाईं राजा उत सत्पुरुषजन हरु को प्रतिपालन गर्ने हुनुहुन्छ तपाईं, राजा = सबैका अरू वृत्र हा= मेघ को रचना गर्ने, धारण गर्ने र हनन् गर्ने हुनुहुन्छ त्वम् = तपाईं भद्रः - भद्रस्वरूप, भद्रकर्त्ता अरू क्रतुः = अखिल जगत् का कर्ता असि = तपाईं नै हुनुहुन्छ ॥ १९ ॥
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