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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 15
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - सोमः छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒रु॒ष्या णो॑ अ॒भिश॑स्ते॒: सोम॒ नि पा॒ह्यंह॑सः। सखा॑ सु॒शेव॑ एधि नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रु॒ष्य । नः॒ । अ॒भिऽश॑स्तेः । सोम॑ । नि । पा॒हि॒ । अंह॑सः । सखा॑ । सु॒ऽशेवः॑ । ए॒धि॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरुष्या णो अभिशस्ते: सोम नि पाह्यंहसः। सखा सुशेव एधि नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरुष्य। नः। अभिऽशस्तेः। सोम। नि। पाहि। अंहसः। सखा। सुऽशेवः। एधि। नः ॥ १.९१.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 15
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे सोम यः सुशेवः सखाऽभिशस्तेर्न उरुष्यांहसोऽस्मान्निपाहि नोऽस्माकं सुखकार्य्येधि भवसि सोऽस्माभिः कथं न सत्कर्त्तव्यः ॥ १५ ॥

    पदार्थः

    (उरुष्य) रक्ष। उरुष्यतीति रक्षतिकर्मा। निरु० ५। २३। अत्र ऋचि तुनु० इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अभिशस्तेः) सुखहिंसकात् (सोम) रक्षक (नि) नितराम् (पाहि) पालय (अंहसः) अविद्याज्वरादिरोगात् (सखा) मित्रः (सुशेवः) सुष्ठु सुखदः (एधि) भवसि (नः) अस्माकम् ॥ १५ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सुसेवितः परमवैद्यो विद्वान् सर्वैभ्योऽविद्यादिरोगेभ्यः पृथक्कृत्यैतानानन्दयति तस्मात्स सदैव संगमनीयः ॥ १५ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

    पदार्थ

    हे (सोम) रक्षा करने और (सुशेवः) उत्तम सुख देनेवाले (सखा) मित्र ! जो आप (अभिशस्तेः) सुखविनाश करनेवाले काम से (नः) हम लोगों को (उरुष्य) बचाओ वा (अंहसः) अविद्या तथा ज्वरादिरोग से हम लोगों की (नि) निरन्तर (पाहि) पालना करो और (नः) हम लोगों के सुख करनेवाले (एधि) होओ, वह आप हमको सत्कार करने योग्य क्यों न होवें ॥ १५ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को अच्छी प्रकार सेवा किया हुआ वैद्य, उत्तम विद्वान्, समस्त अविद्या आदि राजरोगों से अलग कर उनको आनन्दित करता है, इससे यह सदैव संगम करने योग्य है ॥ १५ ॥

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    विषय

    अभिशस्ति व अंहस् से दूर

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जब हम प्रभु के मित्र बनते हैं तो हमारी यही प्रार्थना होती है कि हे (सोम) = शान्त प्रभो ! आप (नः) = हमें (अभिशस्ते) = अभिशंसन से, अभिशापरूप निन्दा से, किसी को कोसने से (उरुष्य) = निश्चय से बचाइए । हमारे मुख से किसी के लिए कोई अशुभ शब्द उच्चरित न हो । हे सोम ! आप हमें (अंहसः) = अन्य पापों से भी (निपाहि) = निश्चय से बचाइए और इस प्रकार (नः) = हमारे (सखा) = मित्र और (सुशेवः) उत्तम सुख देनेवाले (एधि) होओ । २. औरों का अभिशंसन - निन्दन एक ऐसा पाप है जो हमारी गिरावट का ही कारण नहीं बनता, वह हमें औरों का विरोधी भी बना देता है । वे लोग हमारे शत्रु बन जाते हैं और जीवन में अशान्ति की वृद्धि हो जाती है । इस प्रकार 'कुटिलता' अंहस् है । यह भी उभयलोक विनाशिनी ही है । प्रभु हमारे मित्र हैं । मित्र वही होता है जो प्रमीति से - पाप से बचाता है । प्रभु हमें इन अभिशस्ति व अंहस् से बचाकर सुखी जीवनवाला करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ = प्रभुकृपा से हम औरों की निन्दा और कुटिलतारूपी पापों से दूर होकर सुखी जीवनवाले हों ।

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    विषय

    पक्षान्तर में उत्पादक परमेश्वर और विद्वान् का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( सोम ) परमेश्वर ! राजन् ! तथा हे छात्र ! तू ( अभि शस्तेः ) निन्दा-वचन और घात-प्रतिघात करनेवाले दुष्ट पुरुष से (नः उरुष्य) हमारी रक्षा कर। और तू ( नः ) हमारा ( सखा ) मित्र और (सुशेवः) उत्तम सुखजनक हो । तू ( अंहसः ) पाप से ( नि पाहि ) हमारी रक्षा कर । इत्येकविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्दः—१, ३, ४ स्वराट्पङ्क्तिः ॥ - २ पङ्क्तिः । १८, २० भुरिक्पङ्क्तिः । २२ विराट्पंक्तिः । ५ पादनिचृद्गायत्री । ६, ८, ९, ११ निचृद्गायत्री । ७ वर्धमाना गायत्री । १०, १२ गायत्री। १३, १४ विराङ्गायत्री । १५, १६ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री । १७ परोष्णिक् । १९, २१, २३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्वीकारणीय वैद्य व उत्तम विद्वान संपूर्ण अविद्या इत्यादी रोगांपासून माणसांना वेगळे करून त्यांना आनंदित करतो. त्यामुळे सदैव त्यांचा संग करावा. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Soma, lord of health and happiness, guard us against hate, imprecation and depression. Save us from sin and damnation. Come, we pray, and be with us a good friend, philosopher and guide.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Soma is taught further in the fifteenth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Soma-Vaidya or physician of peaceful disposition, protect us from every work that causes us misery or suffering. Preserve us from all ignorance, sin and physical diseases. Be our true friend causing us good happiness.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (अभिशस्ते:) सुखहिंसकात् कार्यात् = From a work that causes misery or suffering. (उरुष्य) रक्ष | उरुष्यतीति रक्षतिकर्मा । (निरुक्ते ५.२३) ऋचि तु नु इति दीर्घः । (अंहसः) अविद्या ज्वरादि रोगात् = From physical (like fever etc.) and mental diseases like ignorance and sin.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A good physician causes happiness and bliss by keeping away from all physical and mental diseases like ignorance. Therefore, he should be served and associated with.

    Translator's Notes

    That the word सोम in the Vedas is used for a Vaidya or Physician of a peaceful disposition is quite evident from the Mantras like. औषधयः संवदन्ते सोमेन सह राज्ञा । यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन् पारयामसि || ( ऋ० १० १७.२२) and सोमो वै ब्राह्मण: (ताण्ड्य० २३१६.५) = The Vaidya according to the Vedas must be a true Brahmana (a man of peaceful and unselfish nature) as the very definition of a Bhishak (Physician) clearly denotes: यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव । विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहाऽमीवचातनः ॥ = Here the epithet विप्रः or Brahmana has been used for a physician. So Rishi Dayananda Sarasvati's interpretation is quite authentic.

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