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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 13
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सोम॑ रार॒न्धि नो॑ हृ॒दि गावो॒ न यव॑से॒ष्वा। मर्य॑ इव॒ स्व ओ॒क्ये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑ । र॒र॒न्धि । नः॒ । हृ॒दि । गावः॑ । न । यव॑सेषु । आ । मर्यः॑ऽइव स्वे । ओ॒क्ये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोम रारन्धि नो हृदि गावो न यवसेष्वा। मर्य इव स्व ओक्ये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम। रारन्धि। नः। हृदि। गावः। न। यवसेषु। आ। मर्यःऽइव स्वे। ओक्ये ॥ १.९१.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 13
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    पदार्थ = हे  ( सोम ) = सुखप्रद ईश्वर ! ( न ) = जैसे  ( गाव: ) = गौएँ  ( यवसेषु )  घासादि में रमती हैं और  ( मर्य्यः इव ) = जैसे मनुष्य  ( स्व ओक्ये ) = अपने गृह में रमण करता है वैसे ( आ ) = अच्छे प्रकार  ( नः हृदि ) =  हमारे हृदय  में  ( रारन्धि ) = रमण करिये । 


     

    भावार्थ -

     भावार्थ = हे जगदीश्वर ! जैसे गौ आदि पशु अपने खाने योग्य घासादि पदार्थों में उत्साहपूर्वक रमण करते हैं मनुष्य अपने घरों में आनन्द से रहते हैं। ऐसे ही भगवन् ! आप मेरे हृदय में रमण करें, अर्थात् मेरे आत्मा में प्रकाशित हूजिये, जिससे मैं आपको यथार्थ रूप से जानता हुआ अपने जन्म को सफल बनाऊँ। 
     

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