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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 26
    ऋषिः - वसिष्ठः शक्तिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑। शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । क्रतु॑म् । नः॒ । आ । भ॒र॒ । पि॒ता । पु॒त्रेभ्यः॑ । यथा॑ । शिक्ष॑ । नः॒ । अ॒स्मिन् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । याम॑नि । जी॒वाः । ज्योतिः॑ । अ॒शी॒म॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा। शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि ॥२६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। क्रतुम्। नः। आ। भर। पिता। पुत्रेभ्यः। यथा। शिक्ष। नः। अस्मिन्। पुरुऽहूत। यामनि। जीवाः। ज्योतिः। अशीमहि ॥२६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 26
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    पदार्थ = हे ( इन्द्र ) = सर्वज्ञ प्रभो ! ( यथा पिता, पुत्रेभ्यः ) = जैसे पिता अपने पुत्रों को अच्छे ज्ञान और शुभ कर्मों को सिखलाता है, ऐसे ही आप ( नः ) = हमें ( क्रतुम् ) = ज्ञान और शुभ कर्मों की ओर ( आभर) = ले चलो । ( पुरुहूत ) = बहु पूज्य ( नःशिक्षा ) = हमें शिक्षा दो ( अस्मिन् यामनि ) = इस जीवन-यात्रा में ( जीवा: ) = हम जीते हुए ( ज्योतिः अशीमहि ) = आपकी दिव्य ज्योति को प्राप्त होवें ।

     

     

     

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे सर्वशक्तिमन् इन्द्र ! हमें ज्ञानी और उद्यमी बनाओ, जैसे पिता पुत्रों को ज्ञानी और उद्योगी बनाता है। ऐसे हम भी आपके पुत्र ब्रह्मज्ञानी और सत्कर्मी बनें ऐसी प्रेरणा करो। हे भगवन् ! हम अपने जीवन काल में ही, आपके कल्याण कारक ज्योतिस्वरूप को प्राप्त होकर, अपने दुर्लभ मनुष्य-जन्म को सफल करें । दयामय परमात्मन्! आपकी कृपा के बिना न हम ज्ञानी बन सकते हैं, न ही सुकर्मी, अतएव हम पर आप कृपा करें कि हम आपके पुत्र ज्ञानी और सत्कर्मी बनें ।

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