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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 23
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    न त्वावाँ॑ अ॒न्यो दि॒व्यो न पार्थि॑वो॒ न जा॒तो न ज॑निष्यते। अ॒श्वा॒यन्तो॑ मघवन्निन्द्र वा॒जिनो॑ ग॒व्यन्त॑स्त्वा हवामहे ॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । त्वाऽवा॑न् । अ॒न्यः । दि॒व्यः । न । पार्थि॑वः । न । जा॒तः । न । ज॒नि॒ष्य॒ते॒ । अ॒श्व॒ऽयन्तः॑ । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । वा॒जिनः॑ । ग॒व्यन्तः॑ । त्वा॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते। अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥२३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न। त्वाऽवान्। अन्यः। दिव्यः। न। पार्थिवः। न। जातः। न। जनिष्यते। अश्वऽयन्तः। मघऽवन्। इन्द्र। वाजिनः। गव्यन्तः। त्वा। हवामहे ॥२३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 23
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    पदार्थ = हे ( मघवन् इन्द्र ) = परम ऐश्वर्य सम्पन्न परमेश्वर ! ( त्वावान् ) = आप जैसा ( अन्य ) = आपसे भिन्न ( न दिव्यः ) = न द्युलोक में और ( न पार्थिवः ) = न ही पृथिवी पर ( न जातः ) = न हुआ, और ( न जनिष्यते ) = न होगा । ( अश्वायन्तः ) = घोड़े आदि सवारियों की इच्छा करते हुए ( गव्यन्तः ) = दुग्धादिकों के लिए गौओं की इच्छा करते हुए ( वाजिनः ) = ज्ञान और अन्न बलादि से युक्त होकर ( त्वा हवामहे ) = आपकी प्रार्थना उपासना करते हैं ।

     

     

    भावार्थ -

    भावार्थ = परमेश्वर के तुल्य न कोई हुआ है और न कोई होगा। सारे ब्रह्माण्ड उसी के बनाए हुए हैं और वही सबका पालन-पोषण कर रहा है। अतएव हम सब नर-नारी, उसी से गौ आदि अश्वादि उपकारक पशु और अन्न, जल, बल, धन ज्ञानादि मांगते हैं। क्योंकि बड़े राजा महाराजादि भी उसी से भिक्षा माँगनेवाले हैं, हम भी उसी सबके दाता परमात्मा से इष्ट पदार्थ माँगते हैं।

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