यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 79
अ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता। गो॒भाज॒ऽइत् किला॑सथ॒ यत् स॒नव॑थ॒ पूरु॑षम्॥७९॥
स्वर सहित पद पाठअ॒श्व॒त्थे। वः॒। नि॒षद॑नम्। नि॒सद॑न॒मिति॑ नि॒ऽसद॑नम्। प॒र्णे। वः॒। व॒स॒तिः। कृ॒ता। गो॒भाज॒ इति॑ गो॒ऽभाजः॑। इत्। किल॑। अ॒स॒थ॒। यत्। स॒नव॑थ। पूरु॑षम्। पुरु॑ष॒मिति॒ पुरु॑षम् ॥७९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वत्थे वो निषदनम्पर्णे वो वसतिष्कृता । गोभाजऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अश्वत्थे। वः। निषदनम्। निसदनमिति निऽसदनम्। पर्णे। वः। वसतिः। कृता। गोभाज इति गोऽभाजः। इत्। किल। असथ। यत्। सनवथ। पूरुषम्। पुरुषमिति पुरुषम्॥७९॥
पदार्थ -
पदार्थ = (अश्वत्थे ) = कलतक रहेगा वा नहीं ऐसे अनित्य संसार में ( वः ) = आप जीव लोगों की ( निषदनम् ) = स्थिति की ( पर्णे ) = पत्ते के तुल्य चंचल जीवनवाले शरीर में ( वः ) = तुम्हारा ( वसतिः ) = निवास ( कृता ) = किया, ( यत् ) = जिस ( पुरुषम् ) = सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा को ( किल ) = ही ( सनवथ ) = सेवन करो और ( गोभाजः इत् ) = वेदवाणी, इन्द्रिय, किरण आदि के सेवन करनेवाले ही ( किल असथ ) = निश्चय से होओ।
भावार्थ -
भावार्थ = दयामय परमात्मा अपने प्यारे पुत्रों को उपदेश देते हैं— हे पुत्रो ! आप लोग विचार कर देखो, अति चंचल नश्वर, संसार में आप लोगों की मैंने स्थिति की है, उसमें भी पत्ते के तुल्य शीघ्र गिर जानेवाले शरीर में मैंने आप लोगों का निवास कराया है। ऐसे नश्वर संसार और क्षणभंगुर शरीर में रहते हुए भी लोग संसार और शरीर को नित्य अविनाशी जानकर मुझ जगत्पति प्रभु को भुला देते हैं। संसार में ऐसे फँसे कि, न आपकी वेदवाणी जो मेरी प्यारी वाणी है उसमें रुचि रही और न आपके वेदवेत्ता महात्माओं के सत्संग में ही श्रद्धा रही । इसलिए अब भी आपको मेरा उपदेश है, आप लोग सत्संग करें। वेदवाणी सुनने-पढ़ने से ही प्रेम से मेरी भक्ति करते, लोक परलोक में कल्याण के भागी बनें।
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