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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 54
    ऋषिः - बन्धुर्ऋषिः देवता - मनो देवता छन्दः - विराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
    3

    आ न॑ऽएतु॒ मनः॒ पुनः॒ क्रत्वे॒ दक्षा॑य जी॒वसे॑। ज्योक् च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे॥५४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। नः॒। ए॒तु॒। मनः॑। पुन॒रिति॒ पुनः॑। क्रत्वे॑। दक्षा॑य। जी॒वसे॑। ज्योक्। च॒। सूर्य॑म्। दृ॒शे ॥५४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न एतु मनः पुनः क्रत्वे दक्षाय जीवषे । ज्योक्च सूर्यन्दृशे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। नः। एतु। मनः। पुनरिति पुनः। क्रत्वे। दक्षाय। जीवसे। ज्योक्। च। सूर्यम्। दृशे॥५४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 54
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( न: ) = हमें  ( पुन: ) = बार-बार  ( क्रत्वे ) = उत्तम विद्या और श्रेष्ठ कर्म  ( दक्षाय ) = बल के लिए  ( ज्योक् च ) = चिर  काल तक ( जीवसे  ) = जीवन धारण करने के लिए और  ( सूर्यम्  ) = सब चराचर के आत्मा, सबके प्रेरक सूर्य के समान ज्योतिर्मय परमेश्वर के  ( दूशे ) = ज्ञान के लिए  ( मनः ) = मनन  वा ज्ञानशक्ति ( आ एतु ) = प्राप्त हो ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे ज्ञानमय परमात्मन् ! आपकी कृपा से, हम उत्तम वैदिक कर्म, वेद विद्या और उत्तम बल प्राप्ति पूर्वक, बहुत काल तक जीवन धारण करते हुए, आप ज्योतिर्मय परमात्मा के यथार्थ ज्ञान को प्राप्त हों । भगवन् ! आपके यथार्थ स्वरूप को जानकर, आपकी वेद - विद्या का ही सारे संसार में प्रचार करें, ऐसी हमारी प्रार्थना को कृपा कर स्वीकार करें । 

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