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यजुर्वेद अध्याय - 35

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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 9
    ऋषिः - सुचीक ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - विराड् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    कल्प॑न्तां ते॒ दिश॒स्तुभ्य॒मापः॑ शि॒वत॑मा॒स्तुभ्यं॑ भवन्तु॒ सिन्ध॑वः।अ॒न्तरि॑क्षꣳ शि॒वं तुभ्यं॒ कल्प॑न्तां ते॒ दिशः॒ सर्वाः॑॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कल्प॑न्ताम्। ते॒। दिशः॑। तुभ्य॑म्। आपः॑। शि॒वत॑मा॒ इति॑ शि॒वऽत॑माः। तुभ्य॑म्। भ॒व॒न्तु॒। सिन्ध॑वः ॥ अ॒न्तरि॑क्षम्। शि॒वम्। तुभ्य॑म्। कल्प॑न्ताम्। ते॒। दिशः॑ सर्वाः॑ ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कल्पन्तान्ते दिशस्तुभ्यमापः शिवतमास्तुभ्यठम्भवन्तु सिन्धवः । अन्तरिक्षँ शिवन्तुभ्यङ्कल्पन्तान्ते दिशः सर्वाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कल्पन्ताम्। ते। दिशः। तुभ्यम्। आपः। शिवतमा इति शिवऽतमाः। तुभ्यम्। भवन्तु। सिन्धवः॥ अन्तरिक्षम्। शिवम्। तुभ्यम्। कल्पन्ताम्। ते। दिशः सर्वाः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -

    पदार्थ  = हे जीव! ( ते ) = तेरे लिए  ( दिश: ) = पूर्व पश्चिमादि दिशाएँ और इनमें रहनेवाले प्राणिवर्ग  ( शिवतमा: ) = अत्यन्त सुखकारी  ( कल्पन्ताम् ) = हों। ( आप: तुभ्यम् शिवतमा: ) = जल तेरे लिए अत्यन्त कल्याणकारी हों।  ( सिन्धवः तुभ्यम् शिवतमाः भवन्तु ) =  नदियाँ और समुद्र तेरे लिए अति सुखकारी हों।  ( तुभ्यम् ) =  तेरे लिए  ( अन्तरिक्षम् शिवम् ) = मध्य आकाश कल्याणकारी हो ।  ( ते ) = तेरे लिए  ( सर्वाः दिश: ) =  ईशानादि सब विदिशाएँ अत्यन्त कल्याणकारी  ( कल्पन्ताम् ) = होवें।  



     

    भावार्थ -

    भावार्थ = परम कृपालु परमात्मा, अपने पुत्र जीव मात्र को उत्तम उपदेश करते हैं— हे मेरे प्यारे पुत्रो! आप लोग यदि पापाचरण को छोड़कर, सदा वेदानुकूल, अपना आचरण बनाते हुए मेरी प्रेम भक्ति में लग जावें तो आपके लिए सब दिशा, उपदिशा, सब जल, सब नदियां, समुद्र, अन्तरिक्ष और इनमें रहनेवाल सब प्राणी और सब पदार्थ अत्यन्त मंगलकारी हों ।

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