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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 103 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 103/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऐन्द्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स इषु॑हस्तै॒: स नि॑ष॒ङ्गिभि॑र्व॒शी संस्र॑ष्टा॒ स युध॒ इन्द्रो॑ ग॒णेन॑ । सं॒सृ॒ष्ट॒जित्सो॑म॒पा बा॑हुश॒र्ध्यु१॒॑ग्रध॑न्वा॒ प्रति॑हिताभि॒रस्ता॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । इषु॑ऽहस्तैः । सः । नि॒ष॒ङ्गिऽभिः॑ । व॒शी । सम्ऽस्र॑ष्टा । सः । युधः॑ । इन्द्रः॑ । ग॒णेन॑ । सं॒सृ॒ष्ट॒ऽजित् । सो॒म॒ऽपाः । बा॒हु॒ऽश॒र्धी । उ॒ग्रऽध॑न्वा । प्रति॑ऽहिताभिः । अस्ता॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स इषुहस्तै: स निषङ्गिभिर्वशी संस्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन । संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्यु१ग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । इषुऽहस्तैः । सः । निषङ्गिऽभिः । वशी । सम्ऽस्रष्टा । सः । युधः । इन्द्रः । गणेन । संसृष्टऽजित् । सोमऽपाः । बाहुऽशर्धी । उग्रऽधन्वा । प्रतिऽहिताभिः । अस्ता ॥ १०.१०३.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 103; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (सः) वह राजा (इषुहस्तैः) इषुबाण-शस्त्र हाथों में जिसके हैं, ऐसे (सः-निषङ्गिभिः) वह राजा प्रशस्त बाण तलवार, बन्दूक तोप और तोमर आदि शस्त्रों से युक्त सैनिकों के साथ (वशी) शत्रु के बल का वश करनेवाला (संस्रष्टा) युद्ध में संघर्ष करनेवाला (सः) वह राजा (गणेन युधः) शत्रु के सैनिक गण के साथ युद्ध करनेवाला (सोमपाः) सोम ओषधिरस का पीनेवाला, न कि सुरापान करनेवाला (बाहुशर्धी) बाहुबलयुक्त (उग्रधन्वा) प्रहारक धनुष-शस्त्रवाला (प्रतिहिताभिः) प्रेरित इषुओं बाणों से (अस्ता) शत्रुओं को नीचे फेंकनेवाला गिरानेवाला विचलित करनेवाला (संसृष्टजित्) सम्पर्क में आनेवाले शत्रुओं को जीतनेवाला होता है ॥३॥

    भावार्थ - राजा ऐसा होना चाहिये, जो विविध शस्त्रास्त्रों से युक्त सैनिकों के द्वारा शत्रु के बल का वश करनेवाला, संग्राम में लड़नेवाला, शत्रु के सैनिक गण से झूझनेवाला, बाहुबल से युक्त, स्वयं उग्र शस्त्रधारी, शस्त्रों को फेंककर शत्रु को विचलित करनेवाला, सम्पर्क में आये शत्रुओं को जीतनेवाला, सोम आदि ओषधियों के सात्त्विक रसादि का सेवन करनेवाला हो ॥३॥

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