ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 130/ मन्त्र 7
ऋषिः - यज्ञः प्राजापत्यः
देवता - भाववृत्तम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स॒हस्तो॑माः स॒हछ॑न्दस आ॒वृत॑: स॒हप्र॑मा॒ ऋष॑यः स॒प्त दैव्या॑: । पूर्वे॑षां॒ पन्था॑मनु॒दृश्य॒ धीरा॑ अ॒न्वाले॑भिरे र॒थ्यो॒३॒॑ न र॒श्मीन् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒हऽस्तो॑माः । स॒हऽछ॑न्दसः । आ॒ऽवृतः॑ । स॒हऽप्र॑माः । ऋष॑यः । स॒प्त । दैव्याः॑ । पूर्वे॑षाम् । पन्था॑म् । अ॒नु॒ऽदृश्य॑ । धीराः॑ । अ॒नु॒ऽआले॑भिरे । र॒थ्यः॑ । न । र॒श्मीन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्तोमाः सहछन्दस आवृत: सहप्रमा ऋषयः सप्त दैव्या: । पूर्वेषां पन्थामनुदृश्य धीरा अन्वालेभिरे रथ्यो३ न रश्मीन् ॥
स्वर रहित पद पाठसहऽस्तोमाः । सहऽछन्दसः । आऽवृतः । सहऽप्रमाः । ऋषयः । सप्त । दैव्याः । पूर्वेषाम् । पन्थाम् । अनुऽदृश्य । धीराः । अनुऽआलेभिरे । रथ्यः । न । रश्मीन् ॥ १०.१३०.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 130; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 7
पदार्थ -
(सहस्तोमाः) स्तुतिवचनों के साथ (सह छन्दसः) छन्दों के साथ (आवृतः) आवर्तन करनेवाले-सेवन करनेवाले (सहप्रमाः) प्रमासहित (सप्त-दैव्याः) सात दर्शनसाधनवाले ऋषि, सात शीर्षण्य प्राण अथवा मनबुद्धिचित्ताहङ्कार श्रोत्र नेत्र और वाणी (पूर्वेषां पन्थाम्) जीवन्मुक्तों के मार्ग को अनुभव करके (धीराः-अन्वालेभिरे) ध्यानवान् लाभ ग्रहण करते हैं (रथ्यः-न रश्मीन्) जैसे रथस्वामी घोड़ों की लगामों को पकड़ कर मार्ग के पार को प्राप्त होते हैं ॥७॥
भावार्थ - स्तुतिवचनों से युक्त छन्दों से युक्त यज्ञ के सेवन करनेवाले प्रमाण के अनुसार सात स्वाभाविक ऋषि ज्ञान दर्शानेवाले, प्राण मस्तिष्क के सात, मनबुद्धिचित्तअहङ्कार श्रोत्र नेत्र वाणी ये स्वाभाविक ऋषि जिन मुक्तों के मार्ग का अनुभव करके ध्यानी जन इनको घोड़ों का प्रग्रह बना कर मार्ग को पार करते हैं ॥७॥
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