Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 132 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 132/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शकपूतो नार्मेधः देवता - लिङ्गोक्ताः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    ई॒जा॒नमिद्द्यौर्गू॒र्ताव॑सुरीजा॒नं भूमि॑र॒भि प्र॑भू॒षणि॑ । ई॒जा॒नं दे॒वाव॒श्विना॑व॒भि सु॒म्नैर॑वर्धताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒जा॒नम् । इत् । द्यौः । गू॒र्तऽव॑सुः । ईजा॒नम् । भूमिः॑ । अ॒भि । प्र॒ऽभू॒षणि॑ । ई॒जा॒नम् । दे॒वौ । अ॒श्विनौ॑ । अ॒भि । सु॒म्नैः । अ॒व॒र्ध॒ता॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईजानमिद्द्यौर्गूर्तावसुरीजानं भूमिरभि प्रभूषणि । ईजानं देवावश्विनावभि सुम्नैरवर्धताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईजानम् । इत् । द्यौः । गूर्तऽवसुः । ईजानम् । भूमिः । अभि । प्रऽभूषणि । ईजानम् । देवौ । अश्विनौ । अभि । सुम्नैः । अवर्धताम् ॥ १०.१३२.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 132; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (ईजानम्-इत्) यज्ञ करते हुए को अवश्य (गूर्तवसुः) उद्यत उत्कृष्ट वसु विविध धन जिससे प्राप्त होते हैं, वह ऐसा (द्यौः) द्युलोक (अभि०) भलीभाँति बढ़ाता है (ईजानम्) यज्ञ करते हुए को (प्रभूषणि भूमिः) प्रकृष्ट भूषा के निमित्त पृथिवी बढ़ाती है (ईजानम्) यज्ञ करते हुए को (अश्विनौ देवौ) दिव्यगुणवाले दिन-रात (सुम्नैः) सुखों के द्वारा (अभि वर्धताम्) भलीभाँति बढ़ावें ॥१॥

    भावार्थ - यज्ञ करनेवाले को द्युमण्डल से पुष्ट जल वृष्टि मिलती है, यज्ञ करनेवाले को पृथिवी अच्छी उपज देती है, यज्ञ करनेवाले को दिन-रात सुख सुगन्धवाले होकर समृद्ध करते हैं ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top