ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 162/ मन्त्र 1
ऋषिः - रक्षोहा ब्राह्मः
देवता - गर्भसंस्त्रावे प्रायश्चित्तम्
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ब्रह्म॑णा॒ग्निः सं॑विदा॒नो र॑क्षो॒हा बा॑धतामि॒तः । अमी॑वा॒ यस्ते॒ गर्भं॑ दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑णा । अ॒ग्निः । सा॒म्ऽवि॒दा॒नः । र॒क्षः॒ऽहा । बा॒ध॒ता॒म् । इ॒तः । अमी॑वा । यः । ते॒ । गर्भ॑म् । दुः॒ऽनामा॑ । योनि॑म् । आ॒शये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणाग्निः संविदानो रक्षोहा बाधतामितः । अमीवा यस्ते गर्भं दुर्णामा योनिमाशये ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मणा । अग्निः । साम्ऽविदानः । रक्षःऽहा । बाधताम् । इतः । अमीवा । यः । ते । गर्भम् । दुःऽनामा । योनिम् । आशये ॥ १०.१६२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 162; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
विषय - इस सूक्त में स्त्रियों की योनि में गर्भ में रोगकृमि प्रवेश की चिकित्सा कही है, उदुम्बर चित्रक से दूर करना चाहिए, वह गर्भबीज, गर्भ, बालक को खा जाता है, आदि विषय हैं।
पदार्थ -
(यः) जो (अमीवा दुर्णामा) रोगभूत पापरूपक्रिमि (ते) हे स्त्रि ! तेरे (गर्भं योनिम्) गर्भ को योनिस्थान को (आशये) आघुसा-आक्रान्त कर गया (ब्रह्मणा) इस उदुम्बर वृक्ष-गूलर वृक्ष के प्रयोग से (संविदानः) सङ्ग्रथित हुआ (रक्षोहा) रक्तादि का भक्षक क्रिमियों का नाशक (अग्निः) चित्रक ओषधि (इतः) इससे (बाधताम्) रोग को परे करे, नष्ट करे ॥१॥
भावार्थ - स्त्री के योनिस्थान या गर्भस्थान में बहुत बुरा रोगक्रिमि मानवबीज अथवा कुछ बढ़े हुए गर्भ को खा जाया करता है, उसको नष्ट करने के लिए उदुम्बरवृक्ष का फल और चित्रक दोनों की गोली वटी बनाकर खाना चाहिए, दोनों के क्वाथ से योनिस्थान का प्रक्षालन करना चाहिए ॥१॥
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