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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
    ऋषिः - घोषा काक्षीवती देवता - अश्विनौ छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    प्रा॒तर्ज॑रेथे जर॒णेव॒ काप॑या॒ वस्तो॑र्वस्तोर्यज॒ता ग॑च्छथो गृ॒हम् । कस्य॑ ध्व॒स्रा भ॑वथ॒: कस्य॑ वा नरा राजपु॒त्रेव॒ सव॒नाव॑ गच्छथः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒तः । ज॒रे॒थे॒ इति॑ । ज॒र॒णाऽइ॑व । काप॑या । वस्तोः॑ऽवस्तोः । य॒ज॒ता । ग॒च्छ॒थः॒ । गृ॒हम् । कस्य॑ । ध्व॒स्रा । भ॒व॒थः॒ । कस्य॑ । वा॒ । न॒रा॒ । रा॒ज॒ऽपु॒त्राऽइ॑व । सव॑ना । अव॑ । ग॒च्छ॒थः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रातर्जरेथे जरणेव कापया वस्तोर्वस्तोर्यजता गच्छथो गृहम् । कस्य ध्वस्रा भवथ: कस्य वा नरा राजपुत्रेव सवनाव गच्छथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रातः । जरेथे इति । जरणाऽइव । कापया । वस्तोःऽवस्तोः । यजता । गच्छथः । गृहम् । कस्य । ध्वस्रा । भवथः । कस्य । वा । नरा । राजऽपुत्राऽइव । सवना । अव । गच्छथः ॥ १०.४०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (नरा) हे गृहस्थों के नेता वृद्ध स्त्री-पुरुषों ! (प्रातः-जरेथे) गृहस्थाश्रम के प्रथमावसर पर स्तुति प्रशंसा को प्राप्त करते हो (जरणा-इव कापया) तुम जरा से काँपते हुए जैसे (यजता वस्तोः-वस्तोः-गृहं गच्छथः) यजनीय-सत्करणीय प्रतिदिन नवविवाहित के घर पर जाते हो (कस्य ध्वस्रा भवथः) किसी के दोष के ध्वंसक-नाशक होते हो (राजपुत्रा-इव कस्य सवना-अव गच्छथः) राजकुमारों की भाँति किसी के भी नवगृहस्थ के उत्सवों में पहुँचते हो ॥३॥

    भावार्थ - स्थविर गृहस्थ स्त्री-पुरुष के योग्य होते हैं। वे प्रतिदिन सम्मानित हुए, गृहस्थ के घर में राजकुमारों की भाँति सम्मान पाये हुए, उनके दोषों को दूर करने के लिए भिन्न-भिन्न उत्सवों में सम्मिलित हों ॥३॥

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