ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 50/ मन्त्र 7
ऋषिः - इन्द्रो वैकुण्ठः
देवता - इन्द्रो वैकुण्ठः
छन्दः - पादनिचृज्ज्गती
स्वरः - निषादः
ये ते॑ विप्र ब्रह्म॒कृत॑: सु॒ते सचा॒ वसू॑नां च॒ वसु॑नश्च दा॒वने॑ । प्र ते सु॒म्नस्य॒ मन॑सा प॒था भु॑व॒न्मदे॑ सु॒तस्य॑ सो॒म्यस्यान्ध॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठये । ते॒ । वि॒प्र॒ । ब्र॒ह्म॒ऽकृतः॑ । सु॒ते । सचा॑ । वसू॑नाम् । च॒ । वसु॑नः । च॒ । दा॒वने॑ । प्र । ते । सु॒म्नस्य॑ । मन॑सा । प॒था । भु॒व॒न् । मदे॑ । सु॒तस्य॑ । सो॒म्यस्य॑ । अन्ध॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते विप्र ब्रह्मकृत: सुते सचा वसूनां च वसुनश्च दावने । प्र ते सुम्नस्य मनसा पथा भुवन्मदे सुतस्य सोम्यस्यान्धसः ॥
स्वर रहित पद पाठये । ते । विप्र । ब्रह्मऽकृतः । सुते । सचा । वसूनाम् । च । वसुनः । च । दावने । प्र । ते । सुम्नस्य । मनसा । पथा । भुवन् । मदे । सुतस्य । सोम्यस्य । अन्धसः ॥ १०.५०.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 50; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 7
पदार्थ -
(विप्र) हे विशेषरूप से तृप्त करनेवाले ! (ते) तेरे (ये ब्रह्मकृतः) स्तोत्र-स्तुति करनेवाले (सुते सचा) उपासनाप्रसङ्ग में सम्मिलित (वसूनां च वसुनः-च दावने) सांसारिक धनों का भी जो श्रेष्ठ बसानेवाला मोक्षधन है, उसके प्रदान करने के लिए उपासक लोग स्तुति करते हैं (मनसा पथा) मनोभाव के सत्यपथ-सदाचण द्वारा (ते मदे) तेरे हर्ष के निमित्त (सुम्नस्य सुतस्य सोम्यस्य प्रभुवन्) निष्पादित साधुभाव उपासनारस के समर्पण में समर्थ होते हैं, उन्हें तू अनुगृहीत कर ॥७॥
भावार्थ - परमात्मा, स्तुति करनेवालों को सब धनों से ऊँचें धन मोक्ष को प्रदान करता है। जो मन से और सदाचरण से तथा साधुभाव से परमात्मा की उपासना करने में समर्थ होते हैं, उन पर वह कृपा बनाये रखता है ॥७॥
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