Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    ऋषिः - त्रितः देवता - अग्निः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अधा॒ ह्य॑ग्ने म॒ह्ना नि॒षद्या॑ स॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो हव्यो॑ ब॒भूथ॑ । तं ते॑ दे॒वासो॒ अनु॒ केत॑माय॒न्नधा॑वर्धन्त प्रथ॒मास॒ ऊमा॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । हि । अ॒ग्ने॒ । म॒ह्ना । नि॒ऽसद्य॑ । स॒द्यः । ज॒ज्ञा॒नः । हव्यः॑ । ब॒भूथ॑ । तम् । ते॒ । दे॒वासः॑ । अनु॑ । केत॑म् । आ॒य॒न् । अध॑ । अ॒व॒र्ध॒न्त॒ । प्र॒थ॒मासः॑ । ऊमाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा ह्यग्ने मह्ना निषद्या सद्यो जज्ञानो हव्यो बभूथ । तं ते देवासो अनु केतमायन्नधावर्धन्त प्रथमास ऊमा: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । हि । अग्ने । मह्ना । निऽसद्य । सद्यः । जज्ञानः । हव्यः । बभूथ । तम् । ते । देवासः । अनु । केतम् । आयन् । अध । अवर्धन्त । प्रथमासः । ऊमाः ॥ १०.६.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (अध हि) तेरी कृपा के अनन्तर (मह्ना) तू अपनी महत्ता से (निषद्य) मेरे हृदय में प्राप्त होके (हव्यः-सद्यः-जज्ञानः-बभूथ) तू स्तुत्य हो जाने पर तुरन्त साक्षात् हो जाता है (ते देवासः) तेरे उपासक महानुभाव (ते-केतुम्-अनु-आयन्) उस स्वरूप को अनुभव करते हैं (प्रथमासः-ऊमाः-अध-अवर्धन्त) वे श्रेष्ठ उपासक रक्षादि प्राप्त हुए तुरन्त बढ़ते हैं-समृद्ध हो जाते हैं ॥७॥

    भावार्थ - जो उपासक परमात्मा की कृपा में रहकर, उसका रक्षण प्राप्त कर उसके स्वरूप का ज्ञान करते हैं, वे सदा उन्नति को प्राप्त होते हैं ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top