ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 94/ मन्त्र 1
ऋषिः - अर्बुदः काद्रवेयः सर्पः
देवता - ग्रावाणः
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
प्रैते व॑दन्तु॒ प्र व॒यं व॑दाम॒ ग्राव॑भ्यो॒ वाचं॑ वदता॒ वद॑द्भ्यः । यद॑द्रयः पर्वताः सा॒कमा॒शव॒: श्लोकं॒ घोषं॒ भर॒थेन्द्रा॑य सो॒मिन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ए॒ते । व॒द॒न्तु॒ । प्र । व॒यम् । व॒दा॒म॒ । ग्राव॑ऽभ्यः । वाच॑म् । व॒द॒त॒ । वद॑त्ऽभ्यः । यत् । अ॒द्र॒यः॒ । प॒र्व॒ताः॒ । सा॒कम् । आ॒शवः॒ । श्लोक॑म् । घोष॑म् । भर॑थ । इन्द्रा॑य । सो॒मिनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रैते वदन्तु प्र वयं वदाम ग्रावभ्यो वाचं वदता वदद्भ्यः । यदद्रयः पर्वताः साकमाशव: श्लोकं घोषं भरथेन्द्राय सोमिन: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । एते । वदन्तु । प्र । वयम् । वदाम । ग्रावऽभ्यः । वाचम् । वदत । वदत्ऽभ्यः । यत् । अद्रयः । पर्वताः । साकम् । आशवः । श्लोकम् । घोषम् । भरथ । इन्द्राय । सोमिनः ॥ १०.९४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 94; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
विषय - इस सूक्त में विद्वान् जन मानवसमाज का कल्याण सिद्ध करते, राष्ट्र का निर्माण करते, ज्ञान का प्रसार करते, परमात्मा के स्तुतिकर्ता जनों को बनाकर आनन्द ग्रहण कराते हैं, आदि विषय हैं।
पदार्थ -
(एते) ये वैदिक विद्वान् (प्रवदन्तु) हमारे लिये प्रवचन करें (वाचं वदद्भ्यः-ग्रावभ्यः) उन वेदवाणी का उपदेश देते हुए, पढ़ाते हुए विद्वानों से (वयं प्रवदाम) हम प्रकृष्टरूप से पढ़ें (वदत) हे सहयोगियों ! तुम भी पढ़ो। (यत्) जिससे (अद्रयः) हे आदरणीय (सोमिनः) ज्ञान रसवाले (पर्वताः) पर्ववाले-पर्व-यथावसर आनेवाले (साकं-आशवः) सहयोग करके शीघ्र ज्ञान करानेवाले (इन्द्राय) राजा के लिए, उसके राष्ट्रहित के लिए (घोषं श्लोकम्) घोषित करने योग्य सर्वत्र प्रसारण करने योग्य प्रशंसनीय प्रवचन को (भरथ) भलीभाँति प्रकृष्टरूप से धारण कराओ-बोलो ॥१॥
भावार्थ - वैदिक विद्वानों से नियमपूर्वक पढ़ना चाहिये, उनसे स्वयं पढ़ें और दूसरों को पढ़वायें। शीघ्र ज्ञान करनेवाले वैदिक विद्वान् राजा तथा उसके राष्ट्र के हित के लिए सर्वत्र अपने ज्ञान को प्रसारित करें ॥१॥
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