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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    सूक्त - मृगारः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    य उ॒ग्रीणा॑मु॒ग्रबा॑हुर्य॒युर्यो दा॑न॒वानां॒ बल॑मारु॒रोज॑। येन॑ जि॒ताः सिन्ध॑वो॒ येन॒ गावः॒ स नो॑ मुञ्च॒त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । उ॒ग्रीणा॑म् । उ॒ग्रऽबा॑हु: । य॒यु: । य: । दा॒न॒वाना॑म् । बल॑म् । आ॒ऽरु॒रोज॑ । येन॑ । जि॒ता: । सिन्ध॑व: । येन॑ । गाव॑: । स: । न॒: । मु॒ञ्च॒तु॒ । अंह॑स: ॥२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य उग्रीणामुग्रबाहुर्ययुर्यो दानवानां बलमारुरोज। येन जिताः सिन्धवो येन गावः स नो मुञ्चत्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । उग्रीणाम् । उग्रऽबाहु: । ययु: । य: । दानवानाम् । बलम् । आऽरुरोज । येन । जिता: । सिन्धव: । येन । गाव: । स: । न: । मुञ्चतु । अंहस: ॥२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 2

    भावार्थ -

    (यः) जो परमेश्वर (उग्र-बाहुः) बलशाली भुजा वाला सर्व शक्तिमान् होकर (उग्रीणां) उग्र शक्तियों का (ययुः) परस्पर संगत करके एक साथ चलाने वाला है और (यः) जो (दानवानां) छेदन भेदन करने वाले या परस्पर को एक दूसरे में समर्पित कर देने वाले दानव अर्थात् पञ्चभूतों के (बलं) बल सामर्थ्यों को शत्रुओं की सेना बल के समान (आ-रूरोज) शिथिल करता, तोड़ डालता है। और (येन) जिस ने (सिन्धवः) बहने वाली नदियों को भी (जिताः) वश कर लिया है और (येन) जिसने (गावः) गौओं, पृथिवियों, सूर्यों एवं गतिमान पिण्डों को भी वश में किया है (सः नः) वह परमेश्वर हमें (अंहसः मुञ्चतु) पाप से मुक्त करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    द्वितीयं मृगारसूक्तम्। १ शाक्वरगर्भा पुरः शक्वरी। २-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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