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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त

    यदि॑ चतुर्वृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । च॒तु॒:ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि चतुर्वृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । चतु:ऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    (यदि चतुर्वृषः असि०) यदि चार प्राणों से युक्त है तो भी और शक्ति उत्पन्न कर, अभी भी निर्बल है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। एकवृषो देवता। १, ४, ५, ७-१० साम्न्युष्णिक्। २, ३, ६ आसुरी अनुष्टुप्। ११ आसुरी गायत्री। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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