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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - ऋभवः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं दे॒वाय॒ जन्म॑ने॒ स्तोमो॒ विप्रे॑भिरास॒या। अका॑रि रत्न॒धात॑मः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । दे॒वाय॑ । जन्म॑ने । स्तोमः॑ । विप्रे॑भिः । आ॒स॒या । अका॑रि । र॒त्न॒ऽधात॑मः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया। अकारि रत्नधातमः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। देवाय। जन्मने। स्तोमः। विप्रेभिः। आसया। अकारि। रत्नऽधातमः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    ( विप्रेभिः ) बुद्धिमान् पुरुष ( आसया ) अपने मुख से ( देवाय ) दिव्य, उत्तम गुणों से युक्त ( जन्मने ) जन्म, इस देह रचना, एवं पुनर्जन्म ग्रहण के निमित्त ( रत्नधातमः ) उत्तम २ रमण योग्य सुखों के देने वाले ( अयम् ) इस प्रकार के ( स्तोमः ) स्तुति समूह को ( अकारि ) करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १—८ मेधातिथि: काणव ऋषिः ॥ देवता—ऋभवः ॥ छन्दः—३ विराड् गायत्री । ४ निचृद्गायत्री । ५,८ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री ॥ १, २, ६, ७ गायत्री ॥ षड्जः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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