ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
तक्ष॒न्नास॑त्याभ्यां॒ परि॑ज्मानं सु॒खं रथ॑म्। तक्ष॑न्धे॒नुं स॑ब॒र्दुघा॑म्॥
स्वर सहित पद पाठतक्ष॑न् । नास॑त्याभ्याम् । परि॑ऽज्मानम् । सु॒ऽखम् । रथ॑म् । तक्ष॑न् । धे॒नुम् । स॒बः॒ऽदुघा॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तक्षन्नासत्याभ्यां परिज्मानं सुखं रथम्। तक्षन्धेनुं सबर्दुघाम्॥
स्वर रहित पद पाठतक्षन्। नासत्याभ्याम्। परिऽज्मानम्। सुऽखम्। रथम्। तक्षन्। धेनुम्। सबःऽदुघाम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
विषय - शिल्पी जन ।
भावार्थ -
और जो विद्वान् शिल्पीजन ( नासत्याभ्याम् ) सदा सत्य व्यवहार से वर्त्तने हारे स्त्री पुरुषों के लिये ( परिज्मानम् ) सब तरफ़ जाने वाले ( सुखं ) उत्तम सुखप्रद अवकाश युक्त ( रथम् ) रमण साधन रथ आदि यान ( तक्षन् ) बनाते हैं और उनके लिये ही ( सबर्दुघाम् ) दुग्धादि रस देने वाली ( धेनुम् ) गाय के समान अमृत, मोक्षज्ञान को पूर्ण करने वाली ( धेनुम् ) वाणी को ( तक्षन् ) उपदेश करते हैं वे मानयोग्य हैं ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १—८ मेधातिथि: काणव ऋषिः ॥ देवता—ऋभवः ॥ छन्दः—३ विराड् गायत्री । ४ निचृद्गायत्री । ५,८ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री ॥ १, २, ६, ७ गायत्री ॥ षड्जः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इस भाष्य को एडिट करें