Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 186 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 186/ मन्त्र 2
    ऋषिः - उलो वातायनः देवता - वायु: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त वा॑त पि॒तासि॑ न उ॒त भ्रातो॒त न॒: सखा॑ । स नो॑ जी॒वात॑वे कृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । वा॒त॒ । पि॒ता । अ॒सि॒ । नः॒ । उ॒त । भ्राता॑ । उ॒त । नः॒ । सखा॑ । सः । नः॒ । जी॒वात॑वे । कृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत वात पितासि न उत भ्रातोत न: सखा । स नो जीवातवे कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । वात । पिता । असि । नः । उत । भ्राता । उत । नः । सखा । सः । नः । जीवातवे । कृधि ॥ १०.१८६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 186; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 44; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (वात) वायुवत् बलवान्, जीवनप्रद ! सर्वव्यापक, सर्वप्रेरक ! (उत) और तू (नः पिता असि) पिता के तुल्य हमारा पालक है, (उत नः भ्राता) और भाई के समान हमारा भरण-पोषण करने वाला है, (उत नः सखा) और मित्र के समान हम से प्रेम करने वाला है। (सः) वह तू (नः) हमारे (जीवातवे) जीवन वृद्धि के लिये (कृधि) कृपा कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः उलो वातायनः॥ वायुर्देवता॥ छन्दः- १, २ गायत्री। ३ निचृद् गायत्री॥ तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top